374 साल पुराना अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। भगवान रघुनाथ की मूर्ति को 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। रघुनाथ के सम्मान में देवी-देवताओं का महाकुंभ कुल्लू दशहरा मनाया जा रहा है। तब से लेकर 1960 तक जिले के सैकड़ों देवी-देवता अपने ही खर्चे पर दशहरा उत्सव में भाग लेते आए हैं। दशहरा के लिए देवता के देवलू घर से ही राशन लेकर आते थे। दूरदराज से आने वाले देवी-देवताओं को आने-जाने में 12 से 15 दिनों का समय लगता था। अब सड़कों की सुविधा होने से देवताओं को दोनों तरफ की आवाजाही में एक हफ्ते का ही समय लगता है।