-करिश्मा राय तंवर
कहते हैं कि मन में आस्था हो तो फिर जान की भी कोई परवाह नहीं होती है. ये एक बार फिर साबित हुआ है मैंगलोर में, जहां देवी दुर्गा को खुश करने के लिए दर्जनों लोग एक दूसरे पर जलती मशालों से हमला करते हैं.ये मंदिर कर्नाटक राज्य के कातील में स्थित है. कातील मैंगलोर से 26 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां देवी मां का मंदिर दुर्गा परमेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है.
मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में सदियों से अग्नि केलि नाम की परंपरा चली आ रही है, जिसमें लोग अपनी जान की परवाह किए बिना एक-दूसरे पर आग फेंकते हैं. यह परंपरा यहां के लोग उत्सव के तौर पर 8 दिनों तक मनाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
यह मंदिर पूर्णतयः कालिका दुर्गा परमेश्वरी को समर्पित है। इस मंदिर की स्थापना 1988 में स्वर्गीय श्री रामू शास्त्री द्वारा की गई थी. इस मंदिर कम समय में भारत में प्रसिद्ध हो गया है. इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इस मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार गोपुरा है जो लगभग 108 फीट ऊंचा और भव्य रूप से डिजाइन किया गया है. मंदिर परिसर में, देवी के 9 अलग-अलग अवतारों के दर्शन कर सकते हैं.
ये मंदिर परिसर में भगवान महागणपति, भगवान नर्तक कृष्ण, भगवान सुब्रमण्यम स्वामी और भगवान नरसिम्हा स्वामी के मंदिर एक समूह की तरह हैं. यह मंदिर देवी दुर्गा के लिए विशेष प्रकार की पूजा के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर दशहरा और अष्टमी के दौरान की जाने वाली विभिन्न विशेष पूजाओं का आयोजन करता है.
इस मंदिर में ये परंपरा दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच में होती है. परंपरा का यह उत्सव शुरु होने से पहले देवी मां की शोभा यात्रा निकाली जाती है और उसके बाद तालाब में डुबकी लगाई जाती है.
तालाब में डुबकी लगाने के बाद ही दोनों गांवों के लोगों के बीच अलग-अलग दल बना लिए जाते हैं. दल बनाने के बाद हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं. मशालों जला दिया जाता है और फिर इन जलती मशालों को एक-दूसरे पर फेंका जाता है.
एक-दूसरे पर आग फेंकने की इस परंपरा को लेकर लोगों का कहना है की यह परंपरा व्यक्ति के दुख को दूर करने में मदद करती है. इस परंपरा से किसी भी व्यक्ति को ना तो आर्थिक और ना ही कोई शारीरिक समस्या होती है. इस खेल में शामिल होने वाले हर शख्स के दुख को मां दुर्गा दूर कर देती है.