-करिश्मा राय तंवर
गोपीनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो उत्तराखंड के चमोली जिले गोपेश्वर में शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है. यह मंदिर अपने वास्तु के कारण अलग से पहचाना जाता है. इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं एवं भगवान सारे भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं , गोपीनाथ मंदिर , केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है. मंदिर पर मिले भिन्न प्रकार के पुरातत्व एवं शिलायें इस बात को दर्शाते है कि यह मंदिर कितना पौराणिक है. मंदिर के चारों ओर टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष प्राचीन काल में कई मंदिरों के अस्तित्व की गवाही देते हैं. लेकिन इस मंदिर की सबसे खास बात है यहां मौजूद भगवान शिव का त्रिशूल, मंदिर के आंगन में एक 5 मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो 12वीं शताब्दी का है.
मंदिर परिसर में मौजूद भगवान शिव के त्रिशूल के दर्शन के लिए भक्त दूर-दराज से आते हैं. लेकिन ये त्रिशूल इस स्थान पर कैसे स्थापित हुआ, इसके पीछे भी एक पौराणिक कहानी है.
मंदिर में त्रिशूल से जुड़ी कहानी
देवी सती के शरीर त्यागने के बाद भगवान शिव जी तपस्या में लीन हो गए थे और ताड़कासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हाहाकार मचाया हुआ था. केवल शिवपुत्र के हाथों ही ताड़कासुर को मारा जा सकता है. जिसके बाद देवताओं ने भगवान शिव की तपस्या को समाप्त करने का काम कामदेव को सौंपा ताकि भगवान शिव की तपस्या समाप्त हो जाए और उनका विवाह देवी पार्वती से हो जाए और उनका पुत्र राक्षस ताड़कासुर का वध कर सके.जब कामदेव ने अपने काम तीरों से महादेव पर प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और शिवजी ने क्रोध में जब कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका, तब वह त्रिशूल उसी स्थान में गढ़ गया. आज उसी स्थान पर गोपीनाथ मंदिर मौजूद है और भगवान शिव का त्रिशूल स्थापित है.
भगवान शिव का ये त्रिशूल इतना शक्तिशाली है कि इस पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता. आंधी आए या फिर कोई तूफान, कोई इस त्रिशूल को इसके स्थान से हिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता. यह त्रिशूल 5 मीटर ऊंचा है और अलग-अलग 8 धातुओं से बना हुआ है.
मान्यता ये भी है कि अगर कोई सच्चा शिव भक्त इस त्रिशूल को अपनी तर्जनी ऊंगली से छूता है, तो उसके शरीर में कंपन पैदा होने लगती है. इस मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग पर मात्र पुजारी ही जलाभिषेक करते हैं. श्रद्धालु तांबे के लोटे में जल भरकर पुजारी को देते हैं. जिसके बाद पुजारी महादेव का अभिषेक करते हैं. भगवान शिव का ये इकलौता मंदिर है जहां उनका त्रिशूल मौजूद है. भोले शंकर के इस मंदिर के दर्शन करने श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं.