टूटा दिल, दोस्ती और रोड ट्रिप… वाइल्ड तो नहीं, पर हंसाती है फिल्म

दिल चाहता है, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा। ऐसी कुछ यादगार फिल्में बनी हैं, जिनमें दोस्ती, दोस्तों के साथ रोड ट्रिप्स को इस अंदाज में पेश किया गया कि उन्हें देखकर लोग अपने दोस्त-यारों संग रोड ट्रिप्स की योजनाएं बनाने लगे। वाइल्ड वाइल्ड पंजाब की कहानी भी चार दोस्तों के बीच बुनी गई है।

क्या है वाइल्ड वाइल्ड पंजाब की कहानी?

कहानी शुरू होती है खन्ने यानी राजेश खन्ना (वरुण शर्मा) के दिल टूटने के साथ। वह अपनी जान देने की सोच रहा है। उसके दोस्त गौरव जैन (जस्सी गिल), मान अरोड़ा (सनी सिंह) और हनी सिंह (मनजोत सिंह) उसे समझाते हैं कि अगर वह लड़की के सामने जाकर कहेगा कि आई एम ओवर यू, तब वह आसानी से इस रिश्ते से निकल आएगा।

खन्ने की गर्लफ्रेंड की शादी होने वाली है। चारों पठानकोट के लिए निकल पड़ते हैं, लेकिन यह सफर आसान नहीं होता। जहां मान की शादी उसकी मर्जी के बिना राधा (पत्रलेखा) से हो जाती है तो वहीं कॉलेज में पढ़ने से ज्यादा ड्रग्स की तस्करी करने वाली मीरा (इशिता राज) भी उनसे जुड़ जाती है। कहानी में विलेन और पुलिस के लिए भी जगह है।

पंजाब को नशे में दिखाना जरूरी है क्या?

फिल्म का अंत ऐसा नहीं है, जिसकी कल्पना दर्शकों ने नहीं की होगी। मेकर्स ने फिल्म की लंबाई कम करके समझदारी का काम तो किया है, लेकिन कुछ घिसी-पिटी चीजें डालकर थोड़ा सा बोरिंग भी बना दिया है। मसलन, पंजाब की बात होते ही शराब और ड्रग्स का जिक्र मानो जरूरी ही हो जाता है।

ऐसा करने से लेखक और फिल्म के निर्माता लव रंजन बच सकते थे। प्यार का पंचानामा और सोनू के टीटू की स्वीटी जैसी फिल्में लिख चुके लव से दोस्ती की बेहतर कहानियों की उम्मीदें होती है। फिल्म की शुरुआत में ही हर किरदार के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी दे दी गई है, उसके आगे फिल्म उनके किरदारों की गहराई में नहीं जाती।

अब सनी सिंह का किरदार बॉडी बिल्डर न भी होता, तो कोई फर्क फिल्म में नहीं पड़ता। हरमन वडाला और संदीप जैन के लिखे संवाद ऐसे नहीं कि छाप छोड़ पाएं। फिल्म में दहेज प्रथा और पंजाब में नशे के हालात जैसे मुद्दों पर सतही तौर पर बात करते हुए फिल्म आगे बढ़ जाती है।

खैर, अपने कॉमेडी जॉनर के साथ फिल्म खुद को लड़खड़ाने के बाद भी जोड़े रखती है। ब्रेकअप में दोस्त को हौसला देने वाला दृश्य हो या पेट्रोल पंप पर अपने दोस्त के भरोसे दूसरों को पीटने वाला सीन, दोस्तों के बीच बुने गए कुछ सीन पर हंसी आएगी।

फिल्म को सिनेमाघर तक जाकर नहीं देखना है। ऐसे में दो घंटे के भीतर बनी इस फिल्म में अगर लॉजिक ना ढूंढा जाए तो घर पर इसे बैठकर देखना अखरेगा नहीं।

मनजोत चमके, पुराने अंदाज में वरुण

अभिनय की बात करें तो मनजोत को फिल्म में चमकने का मौका मिला है। वह अपनी पुरानी छवि को तोड़ते हैं और फ्रंटफुट पर खेलते हैं। वरुण शर्मा अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखे हैं। वह अपने किरदार में कुछ नयापन भले ही नहीं ला पाए हैं, लेकिन हंसाने में कामयाब होते हैं।

सनी सिंह और जस्सी गिल अपने-अपने रोल में ठीक लगे हैं। हालांकि, उनका रोल बेहतर लिखा जा सकता था। पत्रलेखा अच्छी अभिनेत्री हैं, लेकिन इस फिल्म में उनकी प्रतिभा का प्रयोग नहीं हो पाया है। इशिता राज का किरदार भी अधपका है। वो कालेज में धड़ल्ले से ड्रग्स क्यों और कैसे बेचती हैं, उसका कोई लाजिक नहीं दिखाया गया है।