Jammu Kashmir News: झेलम नदी घाटी की जीवन रेखा कहलाती है, लेकिन श्रीनगर (Srinagar Boat Accident) स्मार्ट सिटी से मात्र दो-ढाई किलोमीटर दूर के इलाकों में झेलम पर पुल नहीं होने से यही जीवन रेखा, लोगों का जीवन छीन भी लेती है।
विडंबना यह है कि बेहतरीन मौलिक सुविधाओं के लिए देश के चंद शहरों में शुमार श्रीनगर से लगता हुआ क्षेत्र दशकों से सरकारी उदासीनता का शिकार है। इन इलाकों में आज भी लोग सड़क व पुल जैसी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
70 सालों से कर जारी है पुल की मांग
70 हजार आबादी वाले इन इलाकों के लोग 70 साल से फुटब्रिज की मांग कर रहे हैं। इसके अभाव में लोग झेलम की तेज लहरों को पार कर दूसरी तरफ जाते हैं। इन्हीं लहरों को पार करते समय चंद दिन पहले गंडबल में नौका दुर्घटना हुई, जिसमें स्कूली बच्चों समेत छह लोगों की मौत हुई थी और तीन लोग अब तक लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है।
दो किमी दूर है गंडबल
गंडबल भी श्रीनगर से मात्र दो से ढाई किलोमीटर की दूरी पर झेलम किनारे स्थत है। इस इलाके के साथ पांदरेठन, अथवाजन, लसजन, सोइटेंग व पादशाहीबाग भी हैं। इन सब इलाकों के लिए एक मात्र लिंक मार्ग है जो श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर बटवारा इलाके में है।
चूंकि बटवारा पुल इन क्षेत्रों के लोगों के लिए बहुत दूर पड़ता है, लिहाजा यहां के लोग झेलम की दूसरी तरफ पहुंचने के लिए नदी की लहरों को पार करते हैं। क्योंकि बटवारा पुल तक पहुंचने में 30 से 40 मिनट लगता है, लेकिन नौका से झेलम पारकर यह फासला मात्र पांच मिनट में तय होता है।
इसी लिए स्थानीय लोग या स्कूली बच्चे हर दिन नौका से ही झेलम की लहरों को जान जोखिम में डाल कर पार करते हैं। राज्य सरकारों से झेलम पर फुट ब्रिज बनाने की गुहार लोग लगाते रहे हैं। पर कभी इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया गया।
इसलिए गंडबल नौका दुर्घटना के लिए स्थानीय लोग सरकारों की उदासीनता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। लोगों का कहना है कि फुटब्रिज होता तो गंडबल में नौका दुर्घटना नहीं होती।
फंड के अभाव में रुका है काम
सड़क एवं भवन निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर सज्जाद नकीब ने कहा कि फंड उपलब्ध नहीं होने के चलते काम आगे नहीं बढ़ रहा है। फंड मिलते ही काम फिर शुरू कर दिया जाएगा।
कई बार ग्रामीण कर चुके हैं प्रदर्शन स्थानीय युवक रऊफ अहमद वानी ने कहा कि वर्ष 2021 में फुटब्रिज के निर्माण कार्य को पूरा करने की मांग को लेकर कई बार प्रदर्शन भी किया था, लेकिन हमारी आवाज शायद सरकार तक नहीं पहुंच पाई।
बटवारा पुल तक पहुंचने में हमें विशेषकर स्कूली बच्चों व कालेज के विद्यार्थियों को काफी टाइम लगता है। टाइम पर स्कूल-कालेज नहीं पहुंच पाते। इसलिए झेलम दरिया को पार करते रहे हैं। मोहम्मद सलीम ने कहा