आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभालेंगी

आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभालेंगी। विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले हुए इस बदलाव का दिल्ली और आम आदमी पार्टी की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? इसी मुद्दे पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, राकेश शुक्ल, पूर्णिमा त्रिपाठी और अवधेश कुमार मौजूद रहे।

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समीर चौगांवकर: आतिशी को कई नेताओं को साधना पड़ेगा। पार्टी में कई नेता हैं, जो खुद को आतिशी से वरिष्ठ मानते हैं। उन नेताओं को भी आतिशी को साधना पड़ेगा। जिस तरह से आतिशी ने केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद पार्टी को संभाला, उसकी इस ताजपोशी में एक बड़ी भूमिका रही है। अब देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल आगे क्या करते हैं? मुझे लगता है कि केजरीवाल अब राष्ट्रीय राजनीति पर ज्यादा ध्यान देंगे। उनकी पार्टी राष्ट्रीय दल बन गई है तो उसका विस्तार भी वो करना चाहेंगे। पंजाब के अलावा भी दूसरे राज्यों पर भी फोकस करेंगे।

विनोद अग्निहोत्री: सबसे पहले मैं अरविंद केजरीवाल को बधाई दूंगा कि उन्होंने इतना साहसपूर्ण फैसला किया, जबकि उनके सामने जीतनराम मांझी और चंपई सोरेन जैसे उदाहरण थे। उन्होंने जो साहस दिखाया, उसकी तारीफ करनी होगी। यह उनका एक बड़ा राजनीतिक दांव है। 10 साल की सत्ता विरोधी लहर, उन पर लगे दाग को चुनाव में भाजपा मुद्दा बनाती। अब उनके इस्तीफे से इन मुद्दों की धार कुंद पड़ जाएगी। अब वो (केजरीवाल) इमोशनल कार्ड के जरिए दिल्ली में फिर से सरकार बनाने की कोशिश करेंगे।

अवधेश कुमार: राजनीति में अगर आपका निर्णय तात्कालिक परिस्थितियों में होता है तो उसके सफल होने की संभावना बहुत कम होती है। दिल्ली की सड़कों की जो दुर्दशा है, उसे देखा जा सकता है। भाजपा इसे मुद्दा नहीं बना सकी है। वो एक्ट करते हैं और भाजपा उस पर रिएक्ट करती है। यह हमें स्वीकार करना होगा। यह परिवर्तन उसी तरह का है, जैसे बस में गमछा रखकर हम कहते हैं कि ये हमारी सीट है आप देखते रहिए और फिर आकर हम बैठ जाएंगे। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की राजनीति का जवाब न तो भाजपा के पास है, न ही कांग्रेस के पास है।

राकेश शुक्ल: लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कहा था कि आप जेल का जवाब वोट से दीजिए, लेकिन दिल्ली की जनता ने उन्हें वोट नहीं दिया। जेल में रहने के दौरान शायद वो यही मंथन कर रहे थे कि किसे मुख्यमंत्री बनाएं। उसके लिए उनके पास 22 चेहरे थे क्योंकि एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 39 विधायक दागी हैं। केजरीवाल ने कैडर नहीं तैयार किया बल्कि लाभार्थी वर्ग तैयार किया है। इसलिए केजरीवाल के इस्तीफे के बाद से ही यह कहा जाने लगा कि केजरीवाल नहीं जीते तो सारी योजनाएं बंद हो जाएंगी।

रामकृपाल सिंह: मैं बार-बार यह बात कहता हूं कि 1984 में इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी को 400 से ज्यादा सीटें मिलीं। 90 दिन के भीतर कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे तो कर्नाटक में जनता पार्टी को जीत मिली थी। यह बहुत पहले से है। मतदाता बहुत समझदार है। केजरीवाल ने जो फैसला किया, वह चौंकाने वाला नहीं था। जेल से अगर कहा जा रहा था कि मेरी जगह आतिशी झंडा फरहाएंगी। तो इससे पहले ही स्पष्ट हो गया था।

पूर्णिमा त्रिपाठी: केजरीवाल ने अपनी राजनीति की एबीसीडी भाजपा की गाइडबुक से सीखी है। उसमें एक लाइन है- आपदा में अवसर। केजरीवाल ने भी उसी आपदा में अवसर तलाश लिया है। केजरीवाल ने इस मौके को अपने लिए एक अवसर के रूप में बदल लिया है। अब वो घूम-घूमकर प्रचार कर सकेंगे। आतिशी का चयन कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आतिशी पार्टी में शुरू से जुड़ी रही हैं। यह जरूर है कि केजरीवाल की कुछ बची हुई घोषणाओं को पूरा करने का काम करेंगी।

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