भारत की वेडिंग इंडस्ट्री का साइज करीब 10 लाख करोड़ रुपये (130 अरब डॉलर) है। यह साइज के लिहाज से फूड और ग्रोसरी के बाद दूसरे नंबर पर है। एक औसत भारतीय पढ़ाई की तुलना में शादी समारोह पर दोगुना खर्च करता है। देश में हर साल 80 लाख से 1 करोड़ शादियां होती हैं। यह चीन जैसे देशों के मुकाबले भी अधिक है, जहां हर साल लगभग 70-80 लाख शादियां होती हैं। वहीं, अमेरिका में यह आंकड़ा 20-25 लाख है।
यह प्रतिष्ठित अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म जेफरीज ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की वेडिंग इंडस्ट्री अमेरिका के मुकाबले तकरीबन दोगुना है, जो 70 अरब डॉलर की है। हालांकि, यह चीन के मुकाबले छोटा है, जिसकी वेडिंग इंडस्ट्री 170 अरब डॉलर की है। जेफरीज का कहना है कि अगर शादियां अपनेआप में कोई कैटेगरी होतीं, तो ये 681 अरब डॉलर वाली फूड और ग्रोसरी के बाद दूसरी सबसे बड़ी रिटेल कैटेगरी होती।
शादियों पर क्यों होता है ज्यादा खर्च
भारत में शादियां काफी धूमधाम से होती हैं। इस दौरान कई तरह के समारोह होते हैं, जिनमें लाखों काफी ज्यादा खर्च करते हैं। यह इंडस्ट्री खासकर जेवरात और कपड़े जैसी चीजों की खरीद को बढ़ावा देती है। इनडायरेक्ट तरीके से ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर को भी लाभ पहुंचाता है। विदेशी स्थानों पर होने वाली आलीशान शादियां भी भारतीय वैभव को दिखाती हैं।
भारतीय शादियां और इससे जुड़े समारोह अमूमन कई दिनों तक चलते हैं। यह साधारण से लेकर अति-भव्य तक होते हैं। शादी समारोह का अक्सर क्षेत्र, धर्म और आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। जेफरीज की रिपोर्ट बताती है कि भारत की वेडिंग इंडस्ट्री काफी जटिल होती है। इसकी जटिल हिंदू कैलेंडर से भी बढ़ जाती है, क्योंकि शादियां सिर्फ विशिष्ट महीनों में शुभ दिनों पर ही होती हैं, जो हर साल बदलती रहती हैं।
जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत में शादी और इससे जुड़े समारोह पर 15,000 डॉलर का खर्च होता है। दिलचस्प बात यह है कि एक औसत भारतीय जोड़ा शिक्षा (प्री-प्राइमरी से ग्रेजुएशन) की तुलना में शादियों पर दोगुना खर्च करता है। वहीं, अमेरिका जैसे देशों में यह खर्च शिक्षा की तुलना में आधे से भी कम है।’
किन चीजों पैसे खर्चते हैं लोग
भारत में शादियों में लोग अपनी आर्थिक हैसियत के हिसाब से खर्च करते हैं। अगर अमीर लोगों की शादियों की बात करें, तो वे देश या विदेश में कोई शानदार डेस्टिनेशन पसंद करते हैं। इसमें ठहरने से लेकर शानदार खानपान और पेशेवर कलाकारों की परफॉर्मेंस पर भारी रकम खर्च होती है। फिर प्री और पोस्ट-वेडिंग में भी कई जश्न होते हैं, जिनमें काफी पैसे लगते हैं। अगर मिडिल क्लास शादियों की बात करें, तो उसमें भी सजावट, मनोरंजन, जेवरात और कपड़ों की खरीद के साथ खाने-पीने के इंतजाम में काफी पैसे खर्च किए जाते हैं।
जेफरीज का कहना है कि भारत में कई कैटेगरीज तो खासतौर पर शादियों के भरोसे ही टिकी हैं। जैसे कि आभूषण, परिधान, खानपान, हॉस्पिटैलिटी और ट्रैवल। मिसाल के लिए, ज्वैलरी इंडस्ट्री की आधे से अधिक कमाई दुल्हन के आभूषण से होती है। वहीं, सभी परिधानों पर होने वाले खर्च का 10 प्रतिशत शादियों और समारोहों में पहने जाने वाले कपड़ों से होता है। इसी के इर्द-गिर्द मेकअप और केटरिंग इंडस्ट्री भी तेजी से फल फूल रही है।
वेडिंग इंडस्ट्री ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और पेंट जैसे सेगमेंट को भी बढ़ावा देती है। इनकी डिमांड भी शादी के मौसम में बढ़ जाती है। यही वजह है कि कारोबारी शादियों के सीजन के हिसाब से अपना माल तैयार करते हैं। जेफरीज का कहना है कि शादी की योजना आम तौर पर 6-12 महीने पहले शुरू हो जाती है, और सबसे भव्य शादी समारोह में 50,000 से अधिक मेहमान शामिल होते हैं।