कुछ इस तरह से जम्मू-कश्मीर में आने वाले विधानसभा में बढ़ सकती है भाजपा की मुसीबतें

कुछ इस तरह से जम्मू-कश्मीर में आने वाले विधानसभा में बढ़ सकती है भाजपा की मुसीबतें!

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लोकसभा चुनाव में जम्मू संभाग की दोनों सीटों पर हैट्रिक लगाने वाली भाजपा को कश्मीर में अपनी राजनीति और रणनीति पर नए सिरे से मंथन करना होगा। कश्मीर में उसने भले ही अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हों, लेकिन तीनों सीटों पर उसके समर्थित दलों के तीनों उम्मीदवार हार गए। दो की जमानत भी जब्त हो गई। इससे भाजपा का जम्मू-कश्मीर में निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने बूते सरकार बनाने की उम्मीदों का गणित पूरी तरह गड़बड़ा सकता है।

अब कश्मीर में बीजेपी को अपने चेहरों को ही मैदान में उतारने के लिए रणनीति में व्यापक बदलाव करना होगा। प्रदेश की पांच सीटों में से जम्मू और ऊधमपुर-कठुआ पर ही भाजपा जीती है। अन्य तीन सीटों में अनंतनाग-राजौरी और श्रीनगर नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा बारामूला सीट निर्दलीय इंजीनियर रशीद के खाते में गई है। कश्मीर की इन तीनों सीटों पर भाजपा ने अपना प्रत्याशी न उतारकर जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी और पीपुल्स कान्फ्रेंस का समर्थन किया था।

दोनों समर्थित प्रत्याशी की जमानत हुई जब्त

श्रीनगर से चुनाव लड़ने वाले अपनी पार्टी के मोहम्मद अशरफ मीर को मात्र 9.77 प्रतिशत और अनंतनाग सीट पर उतरे जफर इकबाल को 13.86 प्रतिशत वोट मिले हैं। इन दोनों की जमानत जब्त हो गई। बारामूला से पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन भी चुनाव हारे हैं, लेकिन उन्हें 1.74 लाख वोट मिले। कश्मीर के तीनों लोकसभा क्षेत्रों में 54 विधानसभा क्षेत्र हैं और इनमें 15 विधानसभा क्षेत्र गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी जनजातीय समुदाय के प्रभाव वाले हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद कश्मीर में इन तीनों सीटों पर नेकां-पीडीपी को हराने के लिए गुज्जर-बक्करवाल, सिख और पहाड़ी जनजातीय समुदाय के नेताओं व भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी। प्रदेश भाजपा के नेताओं का कश्मीर में सात लाख कार्यकताओं का दावा भी धरातल पर नहीं दिखा। गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय को राजनीतिक व सामाजिक आरक्षण से भाजपा को काफी उम्मीदें थीं।

जनाधार खिसकने के ये रहे बड़े कारण

कश्मीर में भाजपा ने भले प्रत्यक्ष रूप से चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन वह परोक्ष रूप से मैदान में थी। नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी ने इसे मुद्दा बनाया और अपनी पार्टी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को भाजपा का छद्म दल कहा। इस्लाम का सहारा लेते हुए नेकां-पीडीपी ने लोगों के बीच यह बात पहुंचाई कि भाजपा समर्थित दल भाजपा का एजेंडा ही आगे बढ़ाएंगे। पीपुल्स कान्फ्रेंस और अपनी पार्टी इसकी काट नहीं निकाल पाए।

 नेताओं की पकड़ रही कमजोर

वहीं, सज्जाद लोन पूरी तरह कुपवाड़ा व इसके आसपास सीमित रहे। अपनी पार्टी के पास नेता थे पर कैडर की किल्लत रही। उधर, कश्मीर में भाजपा के स्थानीय नेता फोटो खिंचाने तक सीमित रहे। भाजपा के पुराने जनाधार वाले राजौरी-पुंछ में पार्टी के बड़े नेता जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के साथ खड़े जरूर रही, लेकिन वोट नहीं बढ़ा सके।

हैरानी है कि जफर इकबाल मनहास और अशरफ मीर अपने घर में भी प्रतिद्वंद्वियों से अधिक वोट नहीं ले सके। जम्मू संभाग में भाजपा ने दोनों सीटें जीती हैं, वहां भी उसका वोट प्रतिशत गिरा है। वर्ष 2019 में भाजपा की इन दोनों लोकसभा सीटों पर वोटों की हिस्सेदारी लगभग 48 प्रतिशत थी जो अब घटकर लगभग 25 प्रतिशत रह गई है।