क्या बीजेपी के लिए रामवाण साबित होंगे राममाधव

जम्मू

विनोद कुमार

भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राम माधव को तुरूप के इक्के की तरह जम्मू-कष्मीर के चुनावों की कमान सौंपी है। हालांकि उनके साथ केंद्रीय मंत्री जीके रेड़डी को भी जम्मू-कश्मीर में चुनाव का प्रभारी बरकरार रखा गया है, लेकिन पार्टी को 2014 के विधानसभा चुनावों और उसके बाद सरकार के गठन से सरकार के संचालन तक में राम माधव की भूमिका पर भरोसा जाहिर किया है। इसी भरोसे की बुनियाद पर राम माधव को चुनाव से ठीक पहले प्रभारी बनाया गया है। राम माधव ने कश्मीर में कश्मीरी नेताओं के साथ भाजपा का गणित बिठाया था। आजाद उम्मीदवारों के साथ संपर्क बनाने में राम माधव माहिर है और चुनावी नतीजों के बाद राम माधव जैसे राजनीतिज्ञ की जरूरत पड़ सकती है।

लोकसभा चुनाव के नतीजों से तस्वीर साफ हो जाती है कि आने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजे भी खंडित बहुमत का संकेत देते है। भाजपा ने लोकसभा की दो सीटों पर ही चुनाव लड़ा था और जम्मू संभाग की 43 सीटों मे से 29 पर भाजपा को बढ़त मिली थी, नेकां और कांग्रेस को 7-7 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी। जम्मू कश्मीर का आंकलन किया जाए तो नेकां की बढ़त ज्यादा है। हालांकि कश्मीर को लेकर भाजपा ने बहुत राजनीतिक प्रयोग किये है, लेकिन प्रयोगों के मुताबिक परिणाम नहीं मिले है। राम माधव के आने से कश्मीर के हालात में बदलाव आएगा। फिलहाल कश्मीर को पूर्व मंत्री और पार्टी के महासचिव सुनील शर्मा देख रहे है, लेकिन पहले चरण में उनको भी अपना चुनाव लड़ना है। लिहाजा राम माधव ही कश्मीर की कमान संभाल सकते है।

राम माधव 2020 तक जम्मू-कश्मीर की सियासत सक्रिये रहे। 26 सितंबर 2020 को जेपी नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राम माधव दोबारा आरएसएस मेें चले गये। फिर उन्होंने इंडिया फाउंडेशन-एन इंडिपेंडट थिंक टैंक के लिये काम करना शुरू कर दिया। अब दोबारा से भाजपा ने उनको बतौर चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। भारतीय जनता पार्टी के लिये यह चुनाव बड़े अहमियत रखते है। संवैधानिक बदलाव के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे है। लिहाजा पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।