जवानों से बर्बरता करने आई थी बैट टीम, 2013 के पुंछ हमले को दोहराने की थी साजिश

कुपवाड़ा में पाकिस्तान का बैट हमला बड़ी साजिश थी। बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) 12 वर्ष पहले पुंछ में किए गए हमले को दोहराना चाहती थी। कुपवाड़ा में मारे गए आतंकी के पास जिस तरह का सामान मिला, उससे यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि बैट टीम का इरादा भारतीय जवानों पर हमला कर उनके साथ बर्बरता का था। जैसा कि 2013 में पुंछ के कृष्णा घाटी सेक्टर में किया गया था। तब बैट टीम भारतीय जवान का सिर काट कर ले गई थी। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि मारे गए आतंकी के पास चाकू था। इस तरह के चाकू बैट टीम इस्तेमाल करती है। पूर्व ब्रिगेडियर विजय सागर के अनुसार, कुपवाड़ा में एलओसी के नजदीक छह से सात लॉन्चिंग पैड हैं। इन लॉन्चिंग पैड से आतंकी अपनी हर गतिविधि को अंजाम दे रहे हैं। बैट टीम में पाकिस्तानी सेना तक शामिल होती है। यह एलओसी के नजदीक से ऑपरेट करती है। इन लॉचिंग पैड की भारतीय खुफिया एजेंसियों को सटीक जानकारी है। अब समय है कि भारतीय सेना को बालाकोट में पहले की तरह सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए। इससे पहले कि वहां से आतंकी आकर कुछ करें, वहीं घुसकर आतंकियों को सफाया कर देना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि सीमा पर चल रही गतिविधियों को रोका जाए, क्योंकि पहले से ही जम्मू संभाग में 60 से 70 आतंकी घुसे हुए हैं। एक तरफ सेना को जम्मू में लड़ना पड़ रहा है, दूसरी तरफ आतंकी सीमा से लगातार घुसपैठ कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में समय के साथ आतंकियों ने रणनीति में बदलाव किया है। दहशतगर्द घात लगाकर हमला करने और गोली चलाकर भागने की रणनीति अपना रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को संभावित कमियों को समझने और उन्हें सुधारने के लिए अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। जम्मू और कश्मीर संभाग के बीच अंतर करते हुए पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा कहते हैं कि कश्मीर में आतंकी अक्सर स्थानीय क्षेत्रों में सीमित रहते हैं, जबकि जम्मू में आतंकी चुनौतीपूर्ण इलाकों में रणनीतिक रूप से तैनात होते हैं। इससे सैन्य प्रतिक्रिया जटिल हो जाती है।

पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल परमजीत सिंह सांघा कहते हैं कि हमें ईमानदारी से सही सबक सीखने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि गलतियां दोबारा न हों। हुड्डा के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में सैनिकों को एक विशिष्ट स्थान तक पहुंचने के लिए आठ से 10 घंटे तक पैदल चलना पड़ सकता है। पारंपरिक युद्ध के विपरीत इसमें कोई समय सीमा नहीं होती। 2005 में प्रभावी अभियान के बाद आतंकवाद काफी हद तक खत्म हो गया था। खासकर राजोरी और पुंछ में, जहां 2021 से आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 52 सुरक्षाकर्मियों सहित 70 से अधिक लोगों ने जान गंवाई। स्थानीय लोग पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में सेना की आंख और कान रहे हैं। खुफिया जानकारी जुटाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शांति बनाए रखने में स्थानीय समुदायों विशेष रूप से गुज्जर-बकरवालों का बहुत सहयोग रहा है। इनकी मदद लेनी चाहिए। सांघा ने सीमा पर तारबंदी के बारे कहा कि हमें एक ऐसी बाड़ लगाने की आवश्यकता है, जो वर्तमान में मौजूद बाड़ से बेहतर सुरक्षा प्रदान करे। घुसपैठ के लिए सुरंगों का इस्तेमाल भी चिंताजनक है।