डाट काली मां के प्रति अटूट आस्था,164 सालों से चली आ रही पैदल डोला ले जाने की प्रथा

डाट काली मां के प्रति अटूट आस्था, सालों से चली आ रही पैदल डोला ले जाने की प्रथा
डाट काली मां के प्रति अटूट आस्था, सालों से चली आ रही पैदल डोला ले जाने की प्रथा

देहरादून: डाटकाली मंदिर देहरादून के मोहंड में स्थित है और इसकी अपनी अलग मान्यताएं हैं। इस मंदिर में लोगों की डाट काली माता के प्रति अटूट आस्था है। कहा जाता है कि एक समय देहरादून में दैवीय संकट कहर बरस रहा था और लोग परेशान थे। उस समय धनगर राजपूत समाज के लोग ने बलि देने की प्रथा शुरू की ताकि मां डाट काली को खुश किया जा सके। धीरे-धीरे यह प्रथा मंदिर से मदिरों के साथ डोला ले जाने के रूप में बदल गई।

मान्यता के अनुसार, लगभग सौ साल पहले एक महामारी के कारण धनगर राजपूत समाज को भारी नुकसान हुआ था और बहुत सारे लोगों की मौत हुई थी। उस समय इन समाज के व्यक्ति ने मां काली की पूजा की और उनसे धनगर समाज की रक्षा के लिए प्रार्थना की गई। लोगों का मानना है कि मां काली ने इनकी प्रार्थना स्वीकार की और धनगर समाज को महामारी से छुटकारा मिल गया। इसके बाद से धनगर राजपूत समाज के लोग मां डाट काली को अर्पण करने के लिए डोला बनाने लगे। यद्यपि डोले का स्वरूप विभिन्न बदलते रहे हैं, लेकिन इन लोगों की आस्था मात्र एकजुट है।

यह मंदिर 13 जून 1804 ई. को स्थापित हुआ था और वहां मां काली की मूर्ति मिली थी। एक अंग्रेज अफसर को सपने में मां काली की दर्शन हुईं और उसे मंदिर बनाने का संकेत मिला। इसके बाद सुरंग बिना किसी रुकावट के बन गई। मंदिर को डाट काली मंदिर कहा जाने लगा क्योंकि धनगर राजपूत समाज की प्रार्थना के कारण यहां की सुरंग को डाट कहा जाता है।

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