दिल्ली से बेंगलुरु तक बढ़ता जा रहा पानी का संकट, सूख रहा महानगरों का गला?

देश की राजधानी दिल्ली इन दिनों जल संकट से जूझ रही है। संकट इतना विकराल हो गया कि देश की सर्वोच्च अदालत को सुनवाई करनी पड़ रही है। हरियाणा से आने वाली मूनक नहर पर पुलिस का पहरा है ताकि पानी की सेंधमारी न की जा सके। नदियों-पहाड़ों और प्राकृतिक संपदा से संपन्न हिमाचल प्रदेश ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।

हिमाचल सरकार का कहना है कि उसके पास सिर्फ अपनी जरूरत भर का पानी है। दिल्ली को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। देश में सिर्फ दिल्ली ही नहीं, कई और शहरों व राज्यों का भी गला सूख रहा है। महानगरों में पानी का टैंकर आते ही लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं। जमकर धक्का-मुक्की और सिर फुटव्वल भी होती है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं सिर और कमर पर पानी का कलसा उठाए आती-जाती नजर आएंगी।

‘रेन मैन’ के नाम से मशहूर डॉ. शेखर राघवन का कहना है कि कभी दिल्‍ली, बेंगलुरु और चेन्‍नई जैसे महानगरों में कुओं में पानी हुआ करता था। अब कुएं सूखे पड़े हैं और पीने का पानी बोतलों में बिक रहा है। पानी की किल्लत कोई एक दिन में शुरू नहीं हुई है ना।

उनका कहना है कि धीरे-धीरे पहले ग्राउंड वाटर लेवल डाउन हुआ। कुआं, जलाशय और फिर बोरवेल सूखने लगे। नल और हैंडपंप में पानी आना बंद होता गया, लेकिन हमने ग्राउंड वाटर लेवल को चार्ज करने के लिए प्रयास के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है, जिसका परिणाम है यह जल संकट।

किन राज्‍यों में है पानी का संकट?

पानी का संकट धीरे-धीरे कमोबेश पूरे देश में होता जा रहा है। मौजूदा वक्त में उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार तो दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पानी की किल्‍लत है, वहीं पूर्वी भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोग जल संकट से जूझ रहे हैं।

क्यों बूंद-बूंद पानी को तरस रही धरती?

भारत में जल संकट के कई प्रमुख कारण हैं। इनमें से ज्यादातर कारक एक-दूसरे से जुड़े हैं और मिलकर देश में पानी की कमी को बढ़ावा दे रहे हैं।

अत्यधिक दोहन: कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। कुल जल उपयोग का करीब  70% हिस्सा सिर्फ कृषि के लिए होता है। कृषि में पानी की भारी मांग के चलते कुएं और बोरवेल सूखते जा रहे हैं। यही हाल उद्योगों का भी है, जहां उत्‍पादन प्रक्रियाओं में पानी का जमकर उपयोग होता है। शहरीकरण के बढ़ते दबाव के चलते भी घरों में पानी की खपत बढ़ गई है।

जल प्रदूषण: जीवनदायिनी नदियों में, झीलों और अन्य जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण भी जल संकट का एक कारण है। औद्योगिक कचरा, तरह-तरह के केमिकल, सीवेज और घरेलू अपशिष्ट जल स्रोतों अथवा उसके आसपास डंप किए जा रहे हैं, जिस कारण जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। इससे न केवल पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है, बल्कि इन जलस्रोतों से मिलने वाले पानी की मात्रा भी घटती जा रही है। उदाहरण के लिए – गाजीपुर और भलस्वा लैंडफिल के आसपास पानी की गुणवत्ता जांच में खराब मिली।

ग्लोबल वार्मिंग: इसके कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। अनियमित और कम बारिश व बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोत भर नहीं पाते। भूजल का स्तर गिरता (वाटर लेवल चार्ज नहीं पाता है) जा रहा है। इस कारण सूखे के हालात पैदा हो रहे हैं।

जल प्रबंधन की कमी: पुराने और खराब बुनियादी ढांचे के कारण पानी के रिसाव, वितरण में असमानता, अकुशल सिंचाई और जल संरक्षण के उपायों की कमी ने भी जल संकट को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

बढ़ती आबादी: बढ़ती आबादी पानी की मांग को बढ़ा रही है, जिससे जल संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है।

भविष्‍य में हो सकता है वाटर वार

डीसीएम श्रीराम और सत्व नॉलेज की मार्च, 2024 में आई रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में जल संकट का गंभीर खतरा है। 2050 तक देश में 50 प्रतिशत से ज्यादा जिलों में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा। लोग बूंद-बूंद पानी का तरसने लगेंगे। उस वक्‍त तक देश में प्रति व्यक्ति पानी की मांग में 30% का इजाफा होने की संभावना है।

जल संरक्षण के लिए केंद्र की योजनाएं

भारत टैप पहल: इसके तहत कम बहाव वाले टैप और ‘फिक्स्चर’ के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे 40% तक पानी की बचत होने का अनुमान है।

  • जल क्रांति अभियान: इसके जरिए  ब्लॉक स्तरीय जल संरक्षण योजनाओं के माध्यम से गांवों और शहरों में पानी की कमी दूरी करने का प्रयास। जल ग्राम योजना जैसी योजनाएं इसी अभियान का हिस्सा हैं।
    • राष्ट्रीय जल मिशन: एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के माध्यम से पानी का संरक्षण, अपव्यय को कम करना और राज्यों में एवं राज्यों के भीतर समान वितरण सुनिश्चित करना है।
    • जल शक्ति अभियान:  देश में जल संरक्षण और जल सुरक्षा के अभियान के रूप में इसे 2019 में शुरू किया गया।
    • अटल भूजल योजना: जल प्रयोक्ता संघों के गठन, जल बजट, ग्राम पंचायतवार जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के जरिए सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत प्रबंधन किया जा रहा है।
      • राष्ट्रीय जल पुरस्कार: जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है। इसके तहत देश भर में जल संरक्षण और जल समृद्धि को लेकर व्यक्तियों और संगठनों द्वारा किए गए कार्यों और प्रयासों का सम्‍मानित किया जाता है।
      • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना:  भूजल के दोहन को कम करते हुए बूंद-बूंद सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए यह योजना शुरू की गई। इसके लिए किसानों ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ अभियान से जोड़ा जा रहा है।
      • नमामि गंगे मिशन: जीवनदायिनी नदी गंगा और इसकी सहायक नदियों की सफाई के उद्देश्य से यह योजना चलाई जा रही है।
      • कैच द रेन: ‘जहां भी संभव हो, जैसे भी संभव हो’ हर हाल में बारिश के पानी का संरक्षण करने के लक्ष्य के साथ जल शक्ति मंत्रालय  ‘कैच द रेन’ अभियान चला रहा है। इस स्कीम के तहत बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए जल स्रोतों के निर्माण करवाना भी शामिल है।