स्वामी गोविंद देव गिरी जी महाराज ने कहा कि विदेशों में 30 वर्षों से जाते-जाते मैंने यह अध्ययन किया कि प्रबंधन, स्वयं सहायता, नेतृत्व क्षमता और आपसी संबंध, इस बारे में बहुत कुछ लिखा जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में महाभारत जैसा ग्रंथ कोई नहीं है। अमर उजाला ने ऐसे ही एक प्रकाश के जरिए इस देश को प्रभावित किया है। देहरादून में आयोजित अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी जी महाराज शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने महाभारत, उत्तराखंड, देवभूमि और जीवन का मार्ग बताने वाले विचार साझा किए। आइए जानते हैं उनकी बातें, उन्हीं के शब्दों में… कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि ’21 दिन की महाभारत कथा में व्यस्त हूं। वैसे ऐसे मौकों पर अपना स्थान छोड़कर कहीं जाते नहीं। यहां पता चला कि संवाद का आयोजन हो रहा है तो मुझे लगा कि महाभारत से ज्यादा यह उपयोगी होगा। पहले मुझसे कहा था जाता कि आप महाभारत के इतने आग्रही क्यों है। संपूर्ण वेदों का सार इसी में आता है। महाभारत के लेखक वेदव्यास जी ने जिस प्रकार यह ग्रंथ लिखा है, मुझे अमर उजाला यह शब्द सुनते ही एक नाम और प्रसंग की याद आती है। महाभारत क्या है? ज्ञानमय प्रदीप है। अमर उजाला का अर्थ होता है- द एटर्नल लाइट। यह कहां से आती है? यह प्रकाश भारत से ही आता है।’
भारत को यह प्रकाश उत्तराखंड से मिलता है। इसी उत्तराखंड में वेदव्यासजी ने महाभारत लिखा। महाभारत ने हमें यह ज्ञान दिया कि संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो महाभारत में मिलेगा, वही सब जगह मिलेगा, जो यहां नहीं मिलेगा, वह कहीं नहीं मिलेगा। विदेशों में 30 वर्षों से जाते-जाते मैंने यह अध्ययन किया कि प्रबंधन, स्वयं सहायता, नेतृत्व क्षमता और आपसी संबंध, इस बारे में बहुत कुछ लिखा जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में महाभारत जैसा ग्रंथ कोई नहीं है। अमर उजाला ने ऐसे ही एक प्रकाश के जरिए इस देश को प्रभावित किया है।
‘उत्तराखंड का विकास, विरासत के साथ विकास, समाधान और बाकी बातों पर विमर्श यहां होगा। सारे संसार को जल देने वाली गंगा जहां से निकलती है, वही उत्तराखंड पानी की किल्लत झेल रहा है। नारदजी ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर से सुशासन के बारे में पूछा था। नारदजी ने पूछा कि यह बताओ कि राजन, जल की आपने क्या व्यवस्था की है क्योंकि जल का निर्माण नहीं किया जा सकता। वर्षा संचित जल को ही रखा जा सकता है। पोखर बनाए जाएं और वर्षा जल एकत्र किया जाए। ज्ञान का जो प्रकाश महाभारत में मिलता है, भारतीय संस्कृति के ज्ञान के इस प्रकाश में ही हमें उत्तराखंड की समस्याओं का समाधान करना पड़ेगा। मन व्यथित हो जाता है, जब यहां के युवा पलायन करते हैं। जहां वेदव्यास जी ने सारा लेखन कार्य किया, वहां शिक्षा की कमी क्यों है. स्वामी गोविंद देव गिरी जी ने कहा कि ‘हमारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा कि हिमालय में तीर्थ है, पूरा हिमालय ही तीर्थ है। यहां का कण-कण तीर्थ है। यहां पानी, शिक्षा, सड़कों की कमी और पलायन है। यहां की संस्कृति का विनाश करने आए घुसपैठियों का बढ़ता दबाव हमारे सामने है। इन सबका उत्तर क्या है? एक ही उत्तर है। उत्तराखंड के युवकों के भीतर भक्ति का जागरण करने की आवश्यकता है कि हम बाहर नहीं जाएंगे। पढ़कर यहां लौटेंगे। निर्माण कर यहां लौटेंगे और देखेंगे कि यहां उद्योग कैसे चलेंगे। संपूर्ण भारत की भक्ति करने वाले वीर सावरकर, शहीद भगत सिंह जैसे व्यक्तित्व हुए। युवाओं को उत्तराखंड के विकास के लिए खुद को अर्पण करना होगा। यह पर्व भक्ति और समर्पण करेगा।’ यहां पक्षपात रहित विकास का दौर चलना चाहिए। यहां के मुख्यमंत्री ने समान नागरिक संहिता लागूकर देश के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। विकास ही पर्याप्त नहीं है।