मवेशी चराने से रोकने पर लद्दाखियों ने चीनी सेना पर बरसाए पत्थर, दुम दबाकर भागे सैनिक

बता देंं कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब एक बार फिर तनाव दिखा है, लेकिन इस बार चीनी सैनिकों को लद्दाखी चरवाहों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही हुआ यूं कि अपने गांव चेहरा में मवेशियों को चरा रहे लद्दाखियों को चीनी सैनिकों ने ऐसा करने से रोका। इस पर लद्दाखी चरवाहों ने भारत माता की जय के नारे लगाए।
जानकारी के अनुसार इसके साथ उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे चीनी सैनिकों पर पत्थर फेंककर खदेड़ दिया। इस घटना का दावा करते हुए चुशुल के स्थानीय पार्षद कौंचूक स्टैनजिन ने मंगलवार को एक वीडियो प्रसासित किया है। पार्षद ने कहा कि यह घटना दो जनवरी को पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 35 और 36 के पास हुई है।
बता दें कि इससे पहले 2019 को भी चीनी सैनिकों ने चरवाहों को रोकने की कोशिश की थी। भारतीय सेना ने तब वहां पर अपने क्षेत्र में तंबू गाड़ दिए थे। इस घटना के बारे में संबंधित अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका। बता दें कि पूर्वी लद्दाख में गलवन की घटना के बाद से भारतीय सेना यहां लगातार मजबूत हो रही है। इसी का परिणाम है कि स्थानीय लोगों के हौसले भी बुलंद हैं।
इसके साथ ही पार्षद कौंचूक स्टैनजिन ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में चरवाहों और खानाबदोशों को पैंगोंग झील के उत्तरी तट के साथ पारंपरिक मैदानों में चीनी सैनिकों द्वारा रोका गया। स्थानीय लोगों ने इसका एक वीडियो भी बनाया है। वीडियो में चरवाहों को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों का सामना करते हुए देखा जा सकता है। चीनी सैनिक उन्हें चीनी क्षेत्र होने का दावा करते हुए वापस जाने के लिए कह रहे हैं।
वीडियो में लद्दाखी चरवाहों को भी स्थानीय भाषा में विरोध करते व चीनी सैनिकों पर पत्थर फेंकते देखा जा सकता है। इसके बाद चीनी सैनिक लौट गए। जहां यह घटना हुई वह न्योमा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत काकजंग में पड़ता है। कौंचूक स्टैनजिन ने कहा कि भारतीय सेना के सकारात्मक बदलाव का असर देखना सुखद है। मैं ऐसे मजबूत नागरिक व सैन्य संबंधों और सीमा क्षेत्र की आबादी के हितों के प्रयास के लिए भारतीय सेना को धन्यवाद देना चाहता हूं।
इस झड़प के बाद स्थानीय लोगों के साथ क्षेत्र के सरपंच, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, भारतीय सेना और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के अधिकारियों ने 12 जनवरी को चरागाह स्थल का दौरा भी किया था।