विस चुनावों में गठबंधन लाजमी नहीं, नेकां ने मजबूरी में मिलाया काग्रेंस से हाथ

जम्मू

विनोद कुमार
सियासी गलियारों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन चर्चा का विषय बना है। आखिर बगैर किसी तकरार और एक प्रयास में ही गठबंधन कैसे संभव हो सकता है। सियासी जानकारों की माने तो गठबंधन नेकां से लिये जरूरी नहीं था, लेकिन कश्मीर में बने सियासी हालात ने अब्दुल्ला खानदान को कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को मजबूर कर दिया।
दरअसल 14 अगस्त 2024 के कोर्ट के फैसले ने नेकां को पशोपेश में डाल दिया। कोर्ट ने जम्मू-कष्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के कथित घोटाले में फारूक अब्दुल्ला को क्लीन चिट दे दी। कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला व अन्य के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के आरोपपत्र को खारिज का दिया। 43.69 करोड़ की कथित अनियमितताओं से जुड़ी जांच में खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य के खिलाफ दायर ईडी की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस आदेश को पीडीपी ने कश्मीर में सियासी पोस्टमार्टम किया। फैसले को भाजपा और नेकां की नई दोस्ती का प्रमाण बताया है। कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद पीडीपी ने एक्स के माध्यम से लिखा कि कोर्ट के फैसले से नेकां और भाजपा का रिश्ता एक्सपोज हो गया है। हालांकि इससे पहले नेकां ने भी पीडीपी को एक्सपोज करने का कोई प्रयास नहीं छोड़ा था। नेकां का आरोप था कि अगर 370 में संशोधन और 35ए हटाने जाने का मुख्य कारण पीडीपी है।
बेबाकी और मुखरता से अकेले चुनाव लड़ने का दावा करने वाले फारूक और उमर अब्दुल्ला ने खामोशी से गठबंधन को हरी झंड़ी दे दी। गठबंधन का ऐलान करने समय फारूक अब्दुल्ला के साथ कोई भी कांग्रेस का नेता नहीं था। हालांकि उस दिन पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, खुद राहुल गांधी, थिंक टैंक केसी वैणुगोपाल कश्मीर में ही मौजूद थे, लेकिन गठबंधन का ऐलान अकेले फारूक अब्दुल्ला ने किया।
हालांकि अभी भी काफी सीटों में तालमेल बनाना अभरी बाकी है। आज ही उमर अब्दुल्ला ने स्वीकार किया है कि अभी भी कईं सीटों पर बातचीत जारी है। उनका कहना है कि अभी भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से बैठक जारी है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुूल गांधी ने भी साफ कर दिया है कि गठबंधन करते समय कार्यकर्ताओं के आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया जाएगा।