अमूमन शांत सी बहने वाली नदियों में इस बार बड़ा ‘जल तूफान’ उठा है। हालात यह हो गए हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार के अलग-अलग इलाकों से होकर बहने वाली नदियों में कहीं 75 साल बाद जलस्तर खतरनाक लेवल पर पहुंचा है। तो कहीं 50 साल बाद नदियों में बाढ़ का पानी गांव और शहरों को तबाह करते हुए आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार जिस तरीके से नदियों में बाढ़ का पानी कई दशकों बाद बढ़ा है और लगातार खतरनाक स्थिति में पहुंचता जा रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। नदियों में बढ़े हुए पानी के इस ट्रेंड को जल शक्ति मंत्रालय ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ साझा किया है। वहीं लगातार बढ़ रहे जल प्रवाह की स्थिति को केंद्र सरकार समेत कई अन्य वैज्ञानिक संस्थान भी मॉनिटर कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है अगर बड़े हुए जल प्रवाह की यही स्थिति अगले कुछ सालों में भी बनी रही तो बड़ी तबाही मच सकती है। फिलहाल दशकों बाद नदियों में बढ़े जलस्तर के पीछे महत्वपूर्ण कारणों में लगातार बादलों के फटने की प्रमुख बात सामने आई है।
इस बार देश की कई नदियों में दशकों बाद बढ़ा हुआ जलस्तर बड़ी तबाही मचाते हुए आगे बढ़ रहा है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस बार उत्तर प्रदेश और बिहार से बहने वाली आठ नदियों में जिस तरीके से पानी बढ़ा है, वैसा बीते कई दशकों में नहीं हुआ। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के वैशाली में बहने वाली गंडक नदी का जलस्तर 1948 के बाद इस बार फिर से इस खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ साझा की गई नदियों में बढ़े हुए जलस्तर की रिपोर्ट के मुताबिक वैशाली में गंडक नदी का जलस्तर खतरनाक स्तर पर पहुंचा है, वह 1948 के जैसा है। 1948 में यहां का जल प्रवाह 50.93 मिलीमीटर प्रति सेकंड था। जो इस साल 50 मिलीमीटर प्रति सेकंड के करीब पहुंच गया है। इसी तरह बिहार के मधुबनी जिले में बहने वाली कमला नदी का भी जल प्रवाह 1965 में जिस तरह था। ठीक 59 साल बाद कमला नदी में जल स्तर उसी वेग पर पहुंच गया है।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि 1965 में 71.35 मिलीमीटर प्रति सेकंड का जल प्रवाह इस नदी में देखा गया था। 2024 में अपने खतरनाक स्तर से ज्यादा तकरीबन 70 मिलीमीटर प्रति सेकंड के करीब पहुंच गया है। नदियों में अचानक बढ़े जलस्तर पर नजर रखने के लिए बनाई गई केंद्रीय कमेटी ने बिहार और उत्तर प्रदेश की नदियों का आकलन कर पूरी रिपोर्ट तैयार की है। बुधवार को यह रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ भी साझा हुई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 1975 में गंगा का जो जलस्तर था, ठीक उसके करीब ही तकरीबन 50 साल बाद फिर से गंगा में जलस्तर का प्रवाह बढ़ गया है। 1975 में यहां पर गंगा का प्रवाह 52.5 मिमी प्रति सेकंड था, जो कि इस बार 51 मिमी प्रति सेकंड के करीब पहुंचा है। बिहार के खगड़िया में बहने वाली बूढ़ी गंडक का 1976 में जो जलस्तर का प्रवाह था, वही 48 साल बाद एक बार फिर यहां का खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। केंद्रीय बाढ़ निगरानी समिति के वरिष्ठ सदस्य (तकनीकी) देवेंद्र धर कहते हैं उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में बहने वाली रामगंगा की स्थिति भी तकरीबन 50 साल बाद इस स्थिति में पहुंची है, जो 1983 में थी। बिहार के सिवान में बहने वाली घाघरा भी 45 साल बाद खतरनाक स्तर पर आकर बह रही है।
केंद्रीय बाढ़ निगरानी समिति के वैज्ञानिकों का कहना है कि वैसे तो बरसात के दौरान ज्यादातर नदियों का बहाव तेज हो जाता है। लेकिन कुछ नदियां ऐसी होती हैं, जो सामान्य दशा में शांत ही बहती हैं और उनका स्तर कभी भी खतरनाक लेवल को पार नहीं करता है। लेकिन इस बार कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं, जिसके चलते देश के अलग-अलग राज्यों में बहने वाली शांत नदियों में भी हलचल मच गई। हालांकि शुरुआती दौर में इन नदियों में बढ़े हुए जलस्तर और जल प्रवाह के लिए कुछ प्रमुख तथ्य सामने आए हैं। नेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के कन्वीनर सुजीत साहा कहते हैं कि इस बार यह देखा गया है कि कई नदियों में दशकों बाद जल प्रवाह तेज हुआ है। यह वह नदियां हैं जो अमूमन अपने बड़े कैचमेंट इलाके के साथ हमेशा से शांत होकर बहती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। साहा कहते हैं कि जिस तरीके से पहाड़ों पर लगातार कम ऊंचाइयों पर क्लाउडबर्स्ट की घटनाएं हो रही है उससे ऐसी स्थिति पैदा हो रही है।