मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग (MPPSC) के साल 2019 और 2020 की परीक्षा के 13 फीसदी छात्रों का रिजल्ट रोकने और मप्र सरकार के जवाब पेश नहीं करने के मामले को जबलपुर हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट जस्टिस राज मोहन सिंह और जस्टिस डीएन मिश्रा की युगल पीठ ने सरकार पर 50 हजार की कॉस्ट लगाई है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि ‘जिस अधिकारी ने इस तरह की लापरवाही बरती है, कास्ट की राशि उसी से वसूल की जाए।’ इसके अलावा युगल पीठ ने एमपीपीएससी को निर्देश दिए कि दो वर्गों के होल्ड 13 प्रतिशत चयनित उम्मीदवारों की सूची पेश करें। याचिका पर अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी। दरअसल, याचिकाकर्ता प्रज्ञा शर्मा, मोना मिश्रा और प्रियंका तिवारी समेत अन्य पांच की तरफ से हाईकोर्ट में एक यााचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया कि प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया था। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद ओबीसी वर्ग के लिए बढ़ाए गए आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 87-13 प्रतिशत का नया फार्मूला तैयार कर रिजल्ट घोषित किया गया। इस फार्मूले के तहत 13 प्रतिशत सामान्य और 13 प्रतिशत ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के परिणाम होल्ड कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि ऐसा सूत्र उनकी तरफ से नहीं दिया गया है। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि वह वर्ष 2019 और 2020 की परीक्षा के साक्षात्कार में शामिल हुई थी। होल्ड किए गए 13 प्रतिशत में उनका नाम है, इसके संबंध में भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई है। प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग के आदेशानुसार एमपीपीएससी ने उक्त फार्मूला लागू किया गया है। याचिका की सुनवाई करते हुए युगलपीठ ने राज्य सरकार और एमपीपीएससी को नोटिस जारी करते हुए 13 प्रतिशत मतदाताओं की सूची पेश करने का आदेश जारी किया है। याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जवाब पेश नहीं किया गया। युगलपीठ ने सरकार के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए 50 हजार की कॉस्ट के साथ जवाब पेश करने समय प्रदान की है। युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी करते हुए याचिका पर अगली सुनवाई 31 जुलाई को निर्धारित की है।