नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान एक व्यक्ति की हत्या से संबंधित मामले में ‘संदेह का लाभ’ देते हुए बरी कर दिया। इस मामले के तहत दो अन्य आरोपियों वेद प्रकाश पियाल और ब्रह्मानंद गुप्ता को भी यह कहते हुए बरी कर दिया गया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ हत्या और दंगे के आरोप साबित करने में विफल रहा।
इस मामले में, सुल्तानपुरी में हुई घटना के दौरान सिख व्यक्ति सुरजीत सिंह की मौत हो गई थी। न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने कहा, “आरोपी सज्जन कुमार को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है।” सज्जन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 109 (किसी अपराध के लिए उकसाना), धारा 302 (हत्या) और धारा 147 (दंगा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सज्जन कुमार फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं, और उन्हें इस मामले में आजीवन की सजा सुनाई गई है। वह कई बार सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी लगा चुके हैं, लेकिन हर बार उनकी याचिका खारिज हो चुकी है।
इसके अलावा, सितंबर की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने सज्जन कुमार की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कोर्ट से जमानत की मांग की थी।
सज्जन कुमार के खिलाफ केस का इतिहास:
- 1984: सज्जन कुमार को सिख विरोधी दंगों में शामिल होने के आरोपों के बाद केस दर्ज किया गया।
- 2018: दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें एक मामले में आजीवन जेल की सजा सुनाई।
- 2023: दिल्ली की अदालत ने सज्जन कुमार को इस मामले में बरी किया।
सज्जन कुमार को इस मामले में दंगों से जुड़े आरोपों में बरी किया जाना विवादों की एक बड़ी चर्चा का विषय बना है, और इसके पीछे काफी सारे सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य जुड़े हैं।
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