भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से एक अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल वर्ल्ड बैंक ने अनुमान जताया है कि साल 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.5 फीसदी की दर से विकास करेगी। वर्ल्ड बैंक के पूर्व के अनुमान की तुलना में यह 1.2 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ल्ड बैंक ने ये भी कहा है कि पूरे दक्षिण एशिया के देश भी 6 फीसदी की मजबूत दर से विकास करेंगे।
भारत रहेगा दक्षिण एशिया के विकास का इंजन
वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि भारत की तेज विकास दर और पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं में आ रहे सुधार की वजह से दक्षिण एशियाई देशों की कुल विकास दर तेज रहेगी। वर्ल्ड बैंक ने मंगलवार को दक्षिण एशिया विकास को लेकर ताजा अपडेट जारी किया है, जिसमें उक्त अनुमान जताया गया है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, अगले दो वर्षों में दुनिया में सबसे तेज विकास दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ही होगा। साल 2025 में भी दक्षिण एशियाई देशों की कुल विकास दर 6.1 फीसदी रहने का अनुमान है।
वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ‘दक्षिण एशिया की कुल अर्थव्यवस्था में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी है और भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7.5 फीसदी रह सकती है। मिड टर्म के बाद यह वापस 6.6 फीसदी पर आ सकती है। भारत की विकास दर में सबसे अहम सेवा क्षेत्र और औद्योगिक विकास होंगे।’ वित्तीय वर्ष 2024-25 में बांग्लादेश की विकास दर 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि बढ़ती महंगाई और व्यापार और विदेशी मुद्रा विनिमय पर प्रतिबंध के चलते विकास दर प्रभावित रहेगी।
पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के संकेत
वित्तीय संकट से जूझ रहे दक्षिण एशिया के एक और देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिले हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान की विकास दर वित्तीय वर्ष 2024-25 में 2.3 फीसदी रह सकती है। वहीं श्रीलंका में साल 2025 में विकास दर 2.5 फीसदी रहेगी। श्रीलंका में पर्यटन और विदेशों से आने वाले धन में तेजी आने के संकेत हैं।
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई देशों की विकास दर को लेकर चिंता भी जाहिर की गई है। वर्ल्ड बैंक के दक्षिण एशिया के उपाध्यक्ष मार्टिन रेजर ने कहा कि ‘दक्षिण एशिया की विकास दर कम समय के लिए तेजी से विकास करेगी, लेकिन कमजोर राजकोषीय स्थिति और जलवायु परिवर्तन से क्षेत्र की विकास दर पर बड़े खतरे हैं। विकास को और लचीला बनाने के लिए दक्षिण एशियाई देशों को ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है, जिससे निजी निवेश और रोजगार विकास को बढ़ावा मिले।’