J&K: 33 फीसदी आरक्षण पर बोलीं महिलाएं- विशेष दर्जे-अलगाववाद ने जकड़ रखी थीं बेड़ियां, अब मिला खुला आसमान
जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होने से आधी आबादी काफी खुश है। खासकर कश्मीरी महिलाएं। उनका कहना है कि विशेष दर्जे और अलगाववाद ने बेड़ियां जकड़ रखीं थीं। अब 73 साल बाद खुला आसमान मिला है। उन्हें भी आगे बढ़ने और विधानसभा की सर्वोच्च कुर्सी तक जाने का मौका मिल सकेगा। भाजपा से जुड़ी महिलाएं इस विषय पर खुलकर बोल रहीं हैं। नेकां ने भी इस बिल का स्वागत किया है, लेकिन इसे तत्काल लागू करने की वकालत की है।
कश्मीरी महिलाओं का कहना है कि आजादी के बाद से 2014 के आखिरी विधानसभा चुनाव तक को शामिल किया जाए तो विधानसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या दहाई के आंकड़े को पार नहीं कर सकती, लेकिन अब जब यह विधेयक पारित हो गया तो इतना तय है कि कम से कम 30 सीटों पर उनका प्रतिनिधित्व होगा। इससे उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त होने का मौका मिल सकेगा।
उनका कहना है कि प्रत्येक विधानसभा चुनाव में कुल मतदाताओं में महिलाओं की संख्या 48-50 फीसदी रहती ही है, लेकिन इसके बाद भी उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त होने का मौका कम मिल पाता है। सभी पार्टियों ने अपना-अपना महिला विंग बना रखा है, लेकिन जब टिकट बंटवारे की बात आती है तो महिलाओं को इससे वंचित कर दिया जाता है कि वे चुनाव नहीं जीत सकती हैं। अब जाकर सही मायने में उन्हें प्रतिनिधित्व मिलेगा।
देश के अन्य राज्यों में पहले से ही महिलाएं राजनीतिक रूप से सशक्त रही हैं, लेकिन यहां विशेष दर्जे की वजह से महिलाएं इससे वंचित रहीं। अलगाववाद का भी इसमें भी बड़ा हाथ रहा है क्योंकि इसमें सभी फैसले पुरुष प्रधान समाज को ध्यान में रखते हुए किए जाते रहे हैं।
बिल अच्छा है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के बारे में सोचा गया, यह अच्छा कदम है। पुरुषों की तुलना में आज महिलाएं अधिक पढ़ी लिखी हैं। ऐसे में उन्हें सशक्त करना वक्त की जरूरत है। कम से कम 50 फीसदी महिलाएं वोटर होती हैं। नेकां का शुरू से ही महिलाओं के प्रति नजरिया बेहतर रहा है। उसने कई को मौका भी दिया है। लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि कहीं यह बिल लॉलीपॉप न बनकर रह जाए। यदि नीयत साफ है तो इसे आज से ही लागू किया जाना चाहिए। – शकीना इट्टू, पूर्व मंत्री व राज्य सचिव-नेकां !अबेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नारे को धरातल पर उतारते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को राजनीतिक हिस्सेदारी दी है। अब बेटियां भी कानून बना सकेंगी। विशेष दर्जे तथा अलगाववाद की वजह से आम महिलाएं अपने हक से वंचित रही हैं। कम से कम अब देश के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर की महिलाएं भी राजनीतिक रूप से सशक्त हो सकेंगी। वे भी विधानसभा की दहलीज तक पहुंचेंगी। यह फैसला रात के बाद उजाले की तरह कश्मीरी महिलाओं के लिए है। – डॉ. द्राक्षां अद्रांबी, अध्यक्ष-जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड