लोकसभा में गूंजा अर्धसैनिक बलों के लिए पुरानी पेंशन का मुद्दा

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ‘पुरानी पेंशन’ लागू हो, उन्हें ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना जाए, अब यह मुद्दा संसद के मानसून सत्र में गूंजने लगा है। बुधवार को समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद धमेंद्र यादव ने सदन में कहा, अर्धसैनिक बलों के जवान बॉर्डर पर शहादत झेल रहे हैं, उन्हें पुरानी पेंशन दीजिए। गुरुवार को रोहतक के लोकसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के लिए पुरानी पेंशन की मांग उठाई। उन्होंने कहा, ये बल देश की सुरक्षा करते हैं, यहां तक कि संसद भवन की रक्षा का दायित्व भी यही बल निभाते हैं। इन्हें 100 दिन का अवकाश मिले। हर राज्य में सैनिक कल्याण बोर्ड की तर्ज पर ‘राज्य अर्धसैनिक बोर्ड’ का गठन हो। सपा के सांसद धमेंद्र यादव ने कहा, जब भाजपा विपक्ष में रही तो ओपीएस की बात करती रही। यह सरकार अब 11 वां बजट पेश कर रही है। देश के सरकारी कर्मचारी, पुरानी पेंशन के लिए परेशान हैं। सरकार, ओपीएस की चर्चा ही नहीं कर रही। लोकसभा में धमेंद्र यादव ने कहा, आप बहुत बड़े राष्ट्र भक्त बनते हैं। सीमा पर जवान शहादत झेल रहे हैं। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों को पुरानी पेंशन दी जाए।

सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कंधों पर न सिर्फ कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व तक, नक्सल प्रभावित क्षेत्र, सीमा, बंदरगाह व एयरपोर्ट के अलावा संसद भवन की सुरक्षा का दायित्व भी है। इन बलों में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी, एनएसजी व असम राइफल शामिल हैं। इन बलों में लंबे समय से ‘पुरानी पेंशन बहाली’ की मांग की जा रही है। जब देश में नई पेंशन स्कीम लागू की गई तो उस वक्त कहा गया है कि नई पेंशन स्कीम, ‘भारत संघ के सशस्त्र बलों’ को छोड़कर, अन्य सभी कर्मचारी इसके दायरे में आएंगे। तब सेना के तीनों अंगों को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ मान लिया गया। उन्हें पुरानी पेंशन के दायरे में रखा गया। बतौर हुड्डा, अच्छी बात है कि सेना में आज भी पुरानी पेंशन लागू है। इसके बाद गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि अर्धसैनिक बल भी ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। ये भी सशस्त्र बलों की परिभाषा में आने चाहिएं। इनके भविष्य की सुरक्षा करना सरकार का कार्य है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा था कि इन बलों में सौ दिन का अवकाश सुनिश्चित होगा। इसके जरिए इन बलों  में शूटिंग की घटनाओं को रोका जा सकता है। अभी तक इस दिशा में कोई भी पहल नहीं हुई है। इन बलों में जवानों को अभी साठ दिन का अवकाश मिल रहा है। सौ दिन का अवकाश सुनिश्चित हो। इनके हितों की रक्षा के लिए सभी प्रदेशों में ‘अर्धसैनिक कल्याण बोर्ड’ का गठन हो। बतौर हुड्डा, अच्छी बात है कि सेना में आज भी पुरानी पेंशन लागू है। इसके बाद गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि अर्धसैनिक बल भी ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। ये भी सशस्त्र बलों की परिभाषा में आने चाहिएं। इनके भविष्य की सुरक्षा करना सरकार का कार्य है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा था कि इन बलों में सौ दिन का अवकाश सुनिश्चित होगा। इसके जरिए इन बलों  में शूटिंग की घटनाओं को रोका जा सकता है। अभी तक इस दिशा में कोई भी पहल नहीं हुई है। इन बलों में जवानों को अभी साठ दिन का अवकाश मिल रहा है। सौ दिन का अवकाश सुनिश्चित हो। इनके हितों की रक्षा के लिए सभी प्रदेशों में ‘अर्धसैनिक कल्याण बोर्ड’ का गठन हो।

केंद्र सरकार, कई मामलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सशस्त्र बल मानने को तैयार नहीं होती। सीएपीएफ में पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इसी चक्कर में फंसा हुआ था। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती हुए सभी कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे से बाहर कर उन्हें ‘एनपीएस’ में शामिल कर दिया गया। इसी तर्ज पर सीएपीएफ जवानों को सिविल कर्मचारी मानकर उन्हें एनपीएस दे दिया। तब सरकार का मानना था कि देश में सेना, नेवी और वायु सेना ही ‘सशस्त्र बल’ हैं। बीएसएफ एक्ट 1968 में भी कहा गया है कि इस बल का गठन ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ के रूप में हुआ है। इसी तरह सीएपीएफ के बाकी बलों का गठन भी भारत संघ के सशस्त्र बलों के रूप में हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 6 अगस्त 2004 को जारी एक पत्र में घोषित किया गया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत केंद्रीय बल, ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं। सीएपीएफ के जवानों और अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में फौजी महकमे वाले सभी कानून लागू होते हैं। सरकार खुद मान चुकी है कि ये बल तो भारत संघ के सशस्त्र बल हैं। इन्हें अलाउंस भी सशस्त्र बलों की तर्ज पर मिलते हैं। इन बलों में कोर्ट मार्शल का भी प्रावधान है। इस मामले में सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। अगर इन्हें सिविलियन मानते हैं तो आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों हैं। फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। जो सर्विस रूल्स हैं, वे भी सैन्य बलों की तर्ज पर बने हैं। अब इन्हें सिविलियन फोर्स मान रहे हैं तो ऐसे में ये बल अपनी सर्विस का निष्पादन कैसे करेंगे। इन बलों को शपथ दिलाई गई थी कि इन्हें जल, थल और वायु में जहां भी भेजा जाएगा, ये वहीं पर काम करेंगे। सिविल महकमे के कर्मी तो ऐसी शपथ नहीं लेते हैं।

सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। उस वक्त यह बात साफ हो गई थी कि सरकार, सीएपीएफ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 11 जनवरी को अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना था। दूसरी तरफ केंद्र सरकार, सीएपीएफ को सिविलियन फोर्स बताती है। अदालत ने इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। अब इस मामले की सुनवाई अगस्त में होगी। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ओपीएस लागू कराने के लिए अब दूसरे कर्मचारी संगठनों का समर्थन मिल रहा है। नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के पदाधिकारियों ने इसका समर्थन किया है। गत वर्ष दिल्ली के रामलीला मैदान में केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मियों की एक विशाल रैली आयोजित करने वाले नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने भी सीएपीएफ में ओपीएस लागू करने की मांग की थी। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स ने भी सीएपीएफ सहित सभी केंद्रीय एवं राज्य सरकार के कर्मियों को ओपीएस के दायरे में लाने के लिए रैली आयोजित की थी। ऑल इंडिया एनपीएस इम्पलाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत पटेल ने भी सीएपीएफ के लिए ओपीएस की मांग का समर्थन किया है।