– नीलम रावत
हिमाचल प्रदेश में मां के ऐसे कई मंदिर है जिसके सामने विज्ञान भी फेल नजर आता है। ऐसा ही एक मंदिर कांगड़ा जिले में मौजूद है। जिसे जोत वाली माता के नाम से जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं ज्वाला देवी मंदिर की। हिमाचल में स्थित इस मंदिर की जोत आज तक कोई नहीं बुझा पाया। मां के समक्ष यहां ना सिर्फ अंग्रेजों ने बल्कि मुगल बादशाह अकबर ने भी अपना शीश झुका दिया था।
जानिए कैसा जायेगा आज का आपका दिन ….
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच ज्वाला देवी का मंदिर बना हुआ है। ज्वाला देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि ज्वाला देवी में सती की जीभ गिरी थी। सभी शक्तिपीठों में ज्वाला देवी भगवान शिव के साथ हमेशा निवास करती हैं। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि शक्तिपीठ में माता की पूजा-अर्चना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है।
घर में रखेंगे कुबेर की मूर्ति को कभी नहीं होगी ये परेशानियां, जानिए ……
ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं। इन ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता हैं। वहीं, अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी हैं। ज्वाला देवी के मंदिर में रोज हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। नवरात्र के मौके पर तो इस मंदिर में दूर दराज से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
मां के समक्ष झुका बादशाह अकबर-
एक बार हिमाचल के नादौन गांव का निवासी ध्यानू भक्त हजारों यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। ध्यानू को मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने गिरफ्तार कर बादशाह अकबर के दरबार में पेश किया। जहां अकबर ने उसे मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए या फिर मां का चमत्कार दिखाने के लिए कहा। मां का चमत्कार सुन अकबर ने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर उसके मन में शंका हुई, उसने ज्वालाओं को बुझाने के बाद नहर का निर्माण करवाया। अकबर ने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए। लेकिन, लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई।
मंदिर में मौजूद बादशाह अकबर का छत्र-
देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए बादशाह अकबर ने पचास किलो सोने का छत्र देवी मां के दरबार में चढ़ाया। लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया और वह छत्र नीचे गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छत्र ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।
पांडवों ने की थी मंदिर की खोज-
ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता की प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन, वे इस भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए। ना ही अंग्रेज और ना ही बादशाह अकबर इस ज्योत को अपनी जगह से अलग कर पाया था।
आज भी मां के मंदिर में 24 घंटे सातों दिन ज्योत जलती रहती है। दूर-दूर से भक्त इस ज्योत को अपने साथ ले जाते हैं और अपने घर पर ज्वाला देवी की जोत जलाते हैं। मान्यता है कि यहां जो भी एक बार दर्शन कर लेता है, उसकी सभी मनोकामनाएं तुरंत पूरी होती हैं।