-अक्षत सरोत्री
उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे पंचायत चुनाव (Panchayat elections) का बिगुल बज रहा है जिला पंचायत अध्यक्ष और ग्राम प्रधान पद के आरक्षण की घोषणा होने के बाद सभी दलों में घमासान शुरू हो गया। उत्तर प्रदेश का इतिहास रहा है जो पार्टी सत्ता में होती है उसी का जिला पंचायत का अध्यक्ष होता है और अगर सरकार बदली तो कुर्सी भी खिसकी।
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मेरठ में हो चुकी है सियासत गर्म
अध्यक्ष का पद अनारक्षित होने (Panchayat elections) के बाद विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों ने इसे प्रतिष्ठा पूर्ण सीट पर कब्जा जमाने के लिए सियासी गोटियां बिछाना शुरू कर दी हैं। भाजपा के साथ प्रमुख विपक्षी दल सपा, बसपा व कांग्रेस भी आरक्षण जारी होने के बाद जोड़-तोड़ में लग गई है। मेरठ जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट इस बार भी अनारक्षित हुई है। ऐसे में जिले के सियासी दिग्गज इस बार पद पाने के लिए जोड़-तोड़ में जुट गए हैं।
सुरक्षित पद की दौड़ में हैं सभी उम्मीदवार
सभी अपने लिए सुरक्षित सीट (Panchayat elections) की तलाश कर रहे हैं। 1995 से लेकर अब तक जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा पहली बार हुआ है। सीधे तौर पर मानें तो अब तक इस सीट पर वही बैठा जिसे सत्ताधारी दल का सहयोग मिला। इस बार फिर सीट अनारक्षित होने के बाद अध्यक्ष पद के लिए जोरदार मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है।
भाजपा में कई नामों पर विचार शुरू
सत्ता में होने के कारण भाजपा में कई नामों पर विचार शुरू (Panchayat elections) हो गया है। हालांकि पार्टी नेताओं का साफ कहना है कि अभी कोई प्रत्याशी नहीं है। टिकट मांगने का अधिकार सभी को है। जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ ग्राम प्रधानों के आरक्षण में ही अनारक्षित अधिक होने से गांव की सरकार की सियासत गर्म हो गई है। जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी 33 वार्डों के आरक्षण से तय होगी।