बीजेपी सांसद के बयान पर सियासी घमासन, समाजवादी पार्टी के सांसदों ने किया तीखा प्रतिक्रिया

नई दिल्ली: बीजेपी के सांसद रमेश बिधूड़ी (Ramesh Bidhuri) के हाल के बयान ने भारतीय राजनीति में एक तरंग की तरह चर्चा में ला दिया है, जिस पर समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसदों ने तीखी आलोचना की है। इस मामले में बसपा सांसद दानिश अली (Danish Ali) के खिलाफ एक आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद, सपा के नेता डॉ शफीकुर्रहमान बर्क (Dr. Shafiqur Rahman Barq) ने बिधूड़ी के पार्टी से निकालने की मांग की है। वहीं, समाजवादी पार्टी के एक और सांसद डॉ एसटी हसन (Dr. ST Hasan) ने इस मामले में सवाल उठाया है कि उन्हें अब तक क्यों सस्पेंड नहीं किया गया है।

इस विवाद की जड़ मुख्य रूप से रमेश बिधूड़ी के बयान में है, जिनमें वह दानिश अली के खिलाफ असंसदीय और आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसके बाद, सपा के सांसदों ने उनके खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी है।

डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क की तीखी प्रतिक्रिया

डॉ बर्क ने कहा, “मुस्लिमों ने देश की आजादी के लिए हर तरह की तकलीफें सही, यहां तक कि फांसी को भी चूमा। तारीख गवाह है, लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम कौम के लिए इस तरह की बात संसद में करना, कोई नहीं कर सकता और न ही कोई इजाजत है। उन्होंने जो बातें कही उससे उनकी कोई अच्छी इमेज नहीं बनी। मैं चाहूंगा कि अगर इसके पीछे कोई साजिश नहीं तो इन्हें फौरन पार्टी से निकाला जाए या कार्रवाई की जाए। इसे कोई बर्दाश्त नहीं करेगा।”

बिधूड़ी को सस्पेंड क्या नहीं किया- एसटी हसन

सपा सांसद डॉ एसटी हसन ने भी बिधूड़ी के बयान पर निशाना साधते हुए कहा, “इस बार स्पेशल सेशन में बहुत सी बातें एतिहासिक हुई हैं और ये भी एतिहासिक हुआ कि देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का संसद से अपमान किया गया। एक मुस्लिम एमपी के लिए ऐसे-ऐसे शब्द कहे कि उन्हें दोहराया भी नहीं जा सकता। आमतौर पर इस तरह की भाषा बहुत नीचे स्तर के लोग आपस में करते हैं, लेकिन देश की संसद का एक मान सम्मान है, वो तो बर्बाद हुआ ही, लेकिन अध्यक्ष जी ने इस पर कोई एक्शन भी नहीं लिया। छोटी-छोटी बातों में लोग सस्पेंड हो जाते हैं पर उनको अभी तक सस्पेंड नहीं किया गया है। देश के मुसलमान ये सब सुनकर बहुत अफसोसजदा हैं। हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी कि एक दिन देश में ऐसा दिन भी आएगा जब संसद के अंदर मुसलमानों को खुलेआम बेइजजत किया जाएगा।”

इस घमासन में सपा सांसद डॉ. एसटी हसन के आलोचनात्मक स्वर में खरी आवाज़ है कि संसद के ऐसे तरीके का इस्तेमाल न केवल असमाजिक है, बल्कि यह देश की लोकशाही और संसदीय संस्कृति को भी शर्मसार करता है।

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