4.6 करोड़ भारतीय मानसिक विकारों से ग्रसित: डॉ. पुरोहित

Dr. Purohit
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Dr. Purohit, तिरुवनंतपुरम, 01 मार्च (वार्ता) : देश में 4.6 करोड़ लोग मानसिक विकार से पीड़ित हैं और अन्य राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों में इसका प्रसार 1.9 गुना अधिक है।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार डॉ. नरेश पुरोहित ने बुधवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अवसाद और चिंता का देश में इस बीमारी के होने में सबसे अधिक योगदान हैं लेकिन इसे आसानी ने पहचाना नहीं जा सकता है।
केरल में मानसिक विकारों में वृद्धि पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए त्रिशूर स्थित केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. पुरोहित ने यहां यूनीवार्ता को बताया कि इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, केरल में 35 से 45 आयु वर्ग के लोग जिन मानसिक विकारों से पीड़ित होते हैं, उनमें अवसाद और चिंता शीर्ष पर हैं।

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उन्होंने कहा, “ देश में अवसाद के मामलों का योगदान 33.8 प्रतिशत है, जबकि चिंता के मामले 19 प्रतिशत हैं। स्किज़ोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर, इडियोपैथिक डेवलपमेंटल इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी, कंडक्ट डिसऑर्डर और ऑटिज्म देश में अन्य आम समस्याएं हैं।”
एसोसिएशन ऑफ स्टडीज फॉर मेंटल केयर के प्रधान अन्वेषक, डॉ. पुरोहित ने कहा कि मानसिक विकारों के मामले में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात 2:1 है। यह हार्मोनल असंतुलन, पारिवारिक तनाव, काम, घर और परिवार में संतुलन और खुद को अभिव्यक्त करने में असमर्थता के कारण होता है।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा, “ डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार मानसिक विकारों का बोझ 1990 से 2021 तक दोगुना हो गया है और 19.83 करोड़ लोग विभिन्न मानसिक समस्याओं से पीड़ित हैं। इसका मतलब है कि देश में हर सात में से एक व्यक्ति मानसिक विकार से पीड़ित है और उसे मदद की ज़रूरत है।”
उन्होंने कहा कि अवसाद की बढ़ती घटनाओं पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह परिवार और समुदाय में विभिन्न मुद्दों को जन्म देता है।
उन्होंने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य स्वास्थ्य के साथ एकीकृत करने की मांग की जा रही है ताकि इससे जुड़े कलंक को दूर किया जा सके और लोगों तक इसकी पहुंच को आसान बनाया जा सके।”
उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित लोगों से निपटने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी है। प्रति एक लाख आबादी पर महज 0.3 मनोचिकित्सक हैं। इसके अलावा इन विकारों के इलाज के लिए बीमा के मामले में जागरूकता की कमी और बेहद खराब कवरेज भी है।
उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का इलाज लंबा चलता है और इसमें डॉक्टर के पास लगातार जाना, दवाएं लेना और समय-समय पर दवा में बदलाव करना शामिल है। व्यक्ति की मदद करने के लिए परिवार का एक सदस्य होना चाहिए और यह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

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