कोई संदेह नहीं कि लोस के इस महासमर में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही भाजपा का चेहरा हैं, लेकिन 400 पार सीटों के इस बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई सियासी योद्धाओं को अपना रणकौशल दिखाना है। ये ऐसे योद्धा हैं, जिन्होंने अपनी राज्य में दम दिखाते हुए अपना प्रभाव छोड़ा है और राष्ट्रीय राजनीति में स्थान बनाया है। इन्हीं में एक प्रमुख नाम असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का है, जो कांग्रेस से आकर बहुत कम समय में भाजपा के काफी भरोसेमंद बन गए हैं।
पूर्वोत्तर में सफलता की चोटी चढ़े हिमंत को महासमर के बड़े मैदान में महारथ दिखानी है। तय है कि भाजपा के प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के चेहरे के रूप में देश के कई राज्यों के चुनावी मंचों पर वह दिखाई देंगे। वह स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उन पर निगाहें सभी की रहेंगी। इसका कारण है। उनके तीखे तेवर और धारदार बयान हैं, जिससे चुनाव प्रचार में असम या पूर्वोत्तर से इतर राज्यों में भी उनकी मांग रहती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह उन्होंने अपनी पहचान बनाई है तो सिर्फ तीखे बोल ही उनकी विशेषता नहीं है, बल्कि उनकी कहानी काफी अलग है।
आल इंडिया असम स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़कर छात्र राजनीति में उतरे हिमंत असम गण परिषद में सक्रियता दिखाते हुए कांग्रेस में आए। तेजतर्रार नेता के रूप में पहचान बनाई, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व से मनमुटाव के बाद 2015 में भाजपा का दामन थाम लिया । राहुल गांधी के मुखर आलोचक बने हिमंत की ऊर्जा को भाजपा ने भुनाया तो उन्होंने राजनीतिक कौशल दिखाते हुए 2016 में पहली बार असम में भाजपा की सरकार बनवा दी। 2016 में नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के अध्यक्ष बने हिंमत ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाते हुए पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में न सिर्फ भाजपा और राजग की सरकारें बनवाईं, बल्कि सख्त प्रशासक के रूप में भी उभरे