यूरोपीय संघ भारतीय-चाइनीज समेत कई अन्य देशों की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है। यूरोपीय संघ का आरोप है कि ये कंपनियां यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई में रूस की मदद कर रही हैं। यूरोपीय संघ ने इन कंपनियों पर प्रतिबंध का प्रस्ताव दिया है और अगर ये प्रस्ताव सभी सदस्य देश पारित कर देते हैं तो ये पहली बार होगा, जब चीन की कंपनी पर यूरोपीय संघ सीधा प्रतिबंध लगाएगा।
यूरोपीय कंपनियों के साथ व्यापार नहीं कर पाएंगी प्रतिबंधित कंपनियां
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूरोपीय संघ जिन कंपनियों पर प्रतिबंध की तैयारी कर रहा है, उनमें हॉन्ग-कॉन्ग, सर्बिया, भारत, तुर्किए और चीन की कंपनियां शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से यह खबर सामने आयी है। हालांकि कानूनी कारणों से कंपनियों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है। कंपनियों पर प्रतिबंध का मतलब ये होगा कि जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगेगा, वो भविष्य में यूरोप की कंपनियों के साथ व्यापार नहीं कर पाएंगी। यूरोपीय संघ का आरोप है कि रूस इन्हीं थर्ट पार्टी कंपनियों की मदद से प्रतिबंधित सामान की खरीद कर रहा है, जो प्रतिबंधों की वजह से उसे सीधे नहीं मिल पा रहा है।
चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने से हिचकिचा रहा यूरोपीय संघ
यूरोपीय संघ ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस की मदद के आरोप में पहले भी कई चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा था, लेकिन वह प्रस्ताव कई सदस्य देशों के विरोध के बाद खारिज कर दिया गया था। साथ ही चीन ने भी वादा किया था कि वह रूस की मदद नहीं करेगा। बता दें कि चीन, यूरोप के कई देशों का अहम व्यापारिक साझेदार है। यूरोपीय संघ के प्रमुख देश जर्मनी की कारों के लिए चीन की सबसे बड़ा बाजार है। यही वजह है कि यूरोपीय संघ के कई देश चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने से हिचकिचा रहे हैं।
जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी है, उनमें अधिकतर कंपनियां तकनीकी और इलेक्ट्रोनिक्स कंपनियां हैं। कंपनियों पर आरोप है कि इन्होंने रूस के सैन्य और तकनीकी तौर पर मजबूत होने में मदद की और रूस के रक्षा और सुरक्षा सेक्टर के विकास में योगदान दिया। बीते साल अप्रैल में यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वोन डेर लिन ने बीजिंग का दौरा किया था और उस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात में रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराया था।