Hariyali Teej:: क्यों मानते हैं हरियाली तीज, क्या है इसकी खासियत, जानिए अहम जानकारी

तीज
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तीज पर्व का महत्वपूर्ण उत्सव होता है जो सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व खासकर सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लम्बी उम्र और सौभाग्य की कामना के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।

तीज से जुड़ी कथा

तीज पर्व में भगवान शिव और पार्वती के मिलन के विचार से जुड़ा हुआ है। इसे कहा जाता है कि माता पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, लेकिन वे उन्हें पा नहीं सकीं। उन्होंने 108वीं बार हिमालय के राजा पार्वती के घर में जन्म लिया और महादेव को वर रूप में पाने के लिए गहरी तपस्या की, जिसमें उन्होंने पूर्ण रूप से अन्न और जल का त्याग किया। बहुत सारी मुश्किलों के बाद भी उन्होंने तप में लगी रहीं और एक जंगल में गुफा में जाकर सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसे विधिपूर्वक पूजा की। इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती जी को पत्नी रूप में स्वीकार किया।

तीज से एक दिन पहले नवविवाहित लड़कियां अपने मायके चली जाती हैं और उस समय सिंधारा भेजा जाता है जिसमें फल, मेवा, कपड़े, मिठाई और श्रृंगार सामग्री होती है। विशेष रूप से घेवर और फेनी नामक मिठाई के साथ गुझिया भेजी जाती है। जो महिलाएं व्रत रखती हैं, वे बया निकाल कर रख लेती हैं और उसे अपनी ससुराल में किसी बड़ी महिला सास, ननद या जेठानी को दे सकती हैं। जहां घर में कोई बड़ा नहीं होता है, उस सामग्री को किसी मंदिर के पंडित को दी जा सकती है। कुछ समय पहले तक लड़कियां अपनी सहेलियों के साथ मिलकर तीज के अवसर पर मेहंदी लगाती और झूला झूलती थीं और सावन के गीत गाती थीं।

ब्रज में तीज पर्व कुंवारी लड़कियों के लिए त्योहार

ब्रज में तीज पर्व कुंवारी लड़कियों के लिए एक त्योहार है, जबकि राजस्थान में तीज विवाहित और सुहागिन महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण उत्सव है। कई क्षेत्रों में इस अवसर पर विभिन्न पकवान बनाए जाते हैं और विवाहित बेटी और दामाद को विशेष आमंत्रण देकर बुलाया जाता है। सावन के बाद बेटी को घेवर और फेनी के रूप में मिठाई देकर विदा किया जाता है।

तीज पर्व खुशियों, गीतों, रंगों और विभिन्न मिठाइयों के स्वाद के साथ सौभाग्य का प्रतीक होता है। विवाहित लड़कियां इसकी प्रतीक्षा करती हैं और गीत गाती हैं: “अब के बरस भेज भाई को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय रे, लौटेंगी जब बचपन की सखियां, दीजो संदेसा भिजाय रे।”