पुणे, 07 अप्रैल (वार्ता) एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा) और शतावरी (शतावरी रेसमोसस) जैसी आयुर्वेद आधारित हर्बल दवाओं में कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को रोकने की काफी क्षमता है।
यह अध्ययन डॉ. आकाश सग्गम ने प्रो. भूषण पटवर्धन, प्रो. कल्पना जोशी और वैद्य गिरीश टिल्लू के मार्गदर्शन में स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट शोध के दौरान किया है। इसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में डॉ. सुनील गैरोला और डॉ. मनीष गौतम की देखरेख में किया गया।
यह अध्ययन माइलोसुप्प्रेशन पर केंद्रित था, जो कीमोथेरेपी का प्रमुख दुष्प्रभाव है। माइलोसुप्प्रेशन को प्रतिरक्षा के लिए जिम्मेदार सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में अस्थि मज्जा की अक्षमता के रूप में जाना जाता है। अश्वगंधा और शतावरी में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने की काफी क्षमता होती है। डॉ.सग्गम और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन ने चूहों में मायलोसुप्प्रेशन को रोकने के लिए इन जड़ी-बूटियों के इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव को परखा।
डॉ. सग्गम ने मायलोसुप्प्रेशन का कारण बनने वाले कीमोथेरेपी के प्रतिनिधि के रूप में पैक्लिटैक्सेल दवा का इस्तेमाल किया और मायलोसुप्प्रेशन को रोकने के लिए अश्वगंधा तथा शतावरी के जलीय और हाइड्रोअल्कोहलिक अर्क की प्रभावकारिता का पता लगाया। उन्होंने पाया कि पैक्लिटैक्सेल के कारण चूहों में उत्पन्न हुए थकान, दर्द और बालों के झड़ने के लक्षण अश्वगंधा और शतावरी से कम हो गए थे।
केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने यह पांच वर्षीय शोध परियोजना प्रायोजित की है। इस अध्ययन के परिणाम जर्नल- फ्रंटियर्स इन फार्माकोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन ने सफल उद्योग-शिक्षा संघ का एक उदाहरण भी स्थापित किया है।