छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के विवाद से जुड़े एक मामले में तलाक को सही ठहराया है। मामला रायपुर का है, जहां एक बैंक कर्मचारी और एक लाइब्रेरियन की शादी वर्ष 2009 में हुई थी। 2010 में बेटे का जन्म हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद रिश्तों में तनाव आ गया।
पति का आरोप था कि पत्नी ने गर्भपात के लिए दबाव बनाया और कई बार खुद को चोट भी पहुंचाई। साथ ही वह अक्सर पति को पालतू चूहा कहकर अपमानित करती थी। अदालत ने इस व्यवहार को मानसिक क्रूरता माना। अगस्त 2010 में पत्नी मायके चली गई और वापस नहीं लौटी।
अदालत की टिप्पणी
निचली अदालत ने पहले ही पति के आरोपों को सही मानते हुए तलाक का आदेश दिया था। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद शामिल थे, ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने माना कि पत्नी ने वैवाहिक जिम्मेदारियां पूरी नहीं कीं और लंबे समय से अलग रहना परित्याग की श्रेणी में आता है।
पत्नी के आरोप
पत्नी ने हालांकि सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि पति शराब के नशे में रहते थे, गाली-गलौज करते थे और आर्थिक व भावनात्मक उपेक्षा करते थे। उसने यह भी कहा कि ससुराल पक्ष ने उसे स्वीकार नहीं किया। पत्नी ने वैवाहिक अधिकार बहाली की अर्जी भी दी थी।
गुजारा भत्ता
अदालत ने पाया कि पत्नी सरकारी लाइब्रेरियन हैं और लगभग ₹47,000 मासिक वेतन पाती हैं, जबकि पति बैंक में अकाउंटेंट हैं और लगभग ₹35,000 कमाते हैं। बावजूद इसके, बेटे की परवरिश और शिक्षा का बोझ पूरी तरह मां पर है। इसी कारण अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को ₹5 लाख का स्थायी गुजारा भत्ता दे।