कई करेंसीज के मुकाबले इस साल की शुरुआत से अब तक डॉलर पहले की तुलना में 10 पर्सेंट तक कमजोर हो गया है। यही नहीं हालात ऐसे हो गए हैं कि अमेरिकी करेंसी में निवेश करने वाले लोग निकल जाना चाहते हैं। ऐसा इसलिए ताकि महंगाई के संकट में यदि बाजार में गिरावट आए तो नुकसान से बचा जा सके।
अमेरिकी डॉलर में इस साल तेजी से गिरावट देखी जा रही है। 1973 के बाद से अब तक ऐसा पहली बार है, जब किसी एक साल के अंदर ही डॉलर में इतनी बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है। फिलहाल भारतीय रुपये के मुकाबले एक डॉलर की कीमत 85 रुपये है। 20 जून को ही रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले 86.60 थी। कई करेंसीज के मुकाबले इस साल की शुरुआत से अब तक डॉलर पहले की तुलना में 10 पर्सेंट तक कमजोर हो गया है। यही नहीं हालात ऐसे हो गए हैं कि अमेरिकी करेंसी में निवेश करने वाले लोग निकल जाना चाहते हैं। ऐसा इसलिए ताकि महंगाई के संकट में यदि बाजार में गिरावट आए तो नुकसान से बचा जा सके।
अमेरिकी बाजार को समझने वालों का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी के चलते स्थिति खराब हुई है। चीन, भारत, ब्राजील जैसे देशों से अमेरिका को होने वाले निर्यात की कीमत में इजाफा हो गया है और डॉलर कमजोर हुआ है। अब तक डॉलर को दुनिया की सबसे सुरक्षित करेंसी माना जाता रहा है। उसका यह रुतबा अब भी कायम है, लेकिन भरोसे में कमी आई है। इंपोर्ट पर टैरिफ बढ़ गया है, जिसके चलते भारत और चीन जैसे देशों से अमेरिका पहुंचने वाला सामान महंगा हो गया है। इससे अमेरिका में महंगाई बढ़ गई है और डॉलर भी इसके चलते कमजोर हो गया है। इस स्थिति से दूसरे देशों को इतनी परेशानी नहीं है, जितनी अमेरिका के लोगों को ही हो रही है।
स्थिति यह है कि अमेरिका में महंगाई बेतहाशा बढ़ने का डर है। ऐसा होगा तो ग्रोथ में भी कमी आएगी। निवेश लोग कम करेंगे और ज्यादा से ज्यादा पैसा लोग अपने पास सुरक्षित रखना चाहेंगे। एक समस्या यह है कि अमेरिकी बाजार की स्थिरता को लेकर भी निवेशकों में भरोसा कम हुआ है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में फाइनेंस पढ़ाने वाले प्रोफेसर पाउलो पैस्का का कहना है कि अमेरिकी अथॉरिटीज ने जिस तरह से टैरिफ में इजाफा किया है, उससे बड़ा नुकसान हुआ है। अमेरिकी बाजार में ही अस्थिरता आई है और निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है। इसके अलावा अमेरिकी बाजार में भी उत्पाद महंगे हुए हैं। महंगाई के चलते डॉलर कमजोर पड़ा है।