-करिश्मा राय तंवर
समुद्र तल से 5000 मीटर की उंचाई पर है रूपकुंड झील. उत्तराखंड के हिमालयन क्षेत्र में. झील की सबसे बड़ी खासियत है इसके चारों ओर पाए जाने वाले रहस्यमय प्राचीन नरकंकाल, अस्थियां, विभिन्न उपकरण, कपड़े, गहने, बर्तन, चप्पल आदि. इसे कंकालों वाली झील भी कहा जाता है. क्योंकि इसके आस पास कई कंकाल बिखरे हुए हैं.
दरअसल इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं जिनके मुताबिक एक दंतकथा बताती है कि राजा और रानी की कहानी, सदियों पुरानी. इस झील के पास ही नंदा देवी का मंदिर है. पहाड़ों की देवी. उनके दर्शन के लिए एक राजा और रानी ने पहाड़ चढ़ने की ठानी. लेकिन वो अकेले नहीं गए. अपने साथ लाव-लश्कर ले कर गए. रास्ते भर धमा-चौकड़ी मचाई. राग-रंग में डूबे हुए सफ़र तय किया. ये देख देवी गुस्सा हो गईं. उनका क्रोध बिजली बनकर उन पर गिरा. और वो वहीं मौत के मुंह में समा गए.
पहले माना गया था कि इन कंकालों में एक समूह एक परिवार का था, दूसरा कद में मझोले लोगों का. लेकिन अब पता चला है. भारत, ग्रीस, और साउथ ईस्ट एशिया के लोगों के कंकाल इनमें शामिल हैं.
रूपकुंड झील का रहस्य
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्टडी की गई. इन कंकालों की. उसकी रिपोर्ट अब छपी है. रिपोर्ट में पता चला है कि आखिर इन कंकालों का इतिहास क्या है. नेचर कम्यूनिकेशंस पोर्टल पर ये स्टडी छपी है. इस स्टडी को करने वालों में भारत के लोग भी शामिल थे.
71 कंकालों के टेस्ट हुए. इनमें से कुछ की कार्बन डेटिंग हुई. कुछ का डीएनए जांचा गया. कार्बन डेटिंग एक टेस्ट है जिससे पता चलता है कि कोई भी अवशेष कितना पुराना है.
पता चला कि ये सब कंकाल एक समय के नहीं हैं. अलग-अलग टाइम पीरियड के हैं. अलग-अलग नस्लों के हैं. इनमें महिलाओं और पुरुषों दोनों के कंकाल पाए गए. अधिकतर जो कंकाल मिले, उन पर की गई रीसर्च से पता चला कि जिन व्यक्तियों के ये कंकाल थे, वे अधिकतर स्वस्थ ही रहे होंगे.
यह भी जांचा गया कि इन कंकालों में आपस में कोई सम्बन्ध तो नहीं था. क्योंकि पहले साइंटिस्ट्स ने इनमें से एक समूह को एक परिवार का माना था. रीसर्च में मिले डेटा से ये बात साफ़ हुई कि ये लोग परिवारों का हिस्सा नहीं रहे होंगे. क्योंकि इनके डीएनए के बीच कोई भी समानता वाला कारक नहीं मिला.
इनमें से अधिकतर भारत और उसके आस-पास के देशों के कंकाल हैं. इन्हें साउथ ईस्ट एशिया के समूह में रखा गया. कुछ इनमें से ग्रीस के इलाके की तरफ के पाए गए. एक कंकाल चीन की तरफ के इलाके का भी बताया जा रहा है.
ये सभी कंकाल एक साथ एक समय पर वहां इकठ्ठा नहीं हुए. जो भारत और आस-पास के इलाकों वाले कंकाल हैं, वो सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच वहां पहुंचे थे. और जो ग्रीस और आस-पास के इलाके वाले कंकाल हैं, वो सत्रहवीं से बीसवीं शताब्दी के बीच वहां पहुंचे. जो कंकाल चीन के आस-पास का बताया गया, वो भी बाद के ही समय में वहां पहुंचा था.
इससे ये पता चलता है कि वहां मिले कंकाल दो अलग अलग हादसों में मरने वाले लोगों के हैं. रूपकुंड के कंकालों को लेकर जो कहानियां चली हैं, वो दंतकथाओं में शामिल हो चुकी हैं. लोककथाओं का हिस्सा बन चुकी हैं. इन कंकालों पर की गई स्टडी चाहे जो कुछ भी बताती हो, रूपकुंड का ‘कंकालों वाली झील’ नाम आने वाले काफी समय तक उसके साथ बना रहेगा.