-नीलम रावत
कुंभ मेला (KUMBH MELA) दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम है। देशभर से श्रद्धालु कुंभ मेले में शामिल होने के लिए भारत आते हैं। भारत में हर 12वें वर्ष हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में इसका आयोजन किया जाता है। इस बार कुंभ मेले का आयोजन धर्मनगरी हरिद्वार में हो रहा है। लेकिन इस साल कुंभ का आयोजन 12 नहीं बल्कि 11 साल बाद हो रहा है।
11 साल बाद कुंभ
कुंभ का (KUMBH MELA) आयोजन अमृत योग का निर्माण काल गणना के अनुसार होता है। जब कुंभ राशि का गुरु आर्य के सूर्य में परिवर्तित होता है। जिसका मतलब है कि गुरु, कुंभ राशि में नहीं होंगे। इसी वजह से इस बार 11वें साल में कुंभ का आयोजन हो रहा है। 83 सालों बाद ऐसा मौका आया है जब कुंभ का आयोजन 11 साल बाद हो रहा है। इससे पहले, इस तरह की घटना वर्ष 1760, 1885 और 1938 में हुई थी।
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मकर संक्रांति पर शुरूआत
मकर संक्रांति के मौके पर कुंभ मेले (KUMBH MELA) का शुभारंभ होता है। मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ये परंपरा समुंद्र मंथन के बाद से शुरू हुई जब अमृत की बूंदें मृदुलोक सहित 12 स्थानों में बिखरी हुई थीं। इस अमृत कलश के लिए भगवान और दानवों के बीच रस्साकशी भी हुई थी। इसी कारण 12 सालों बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
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गंगा स्नान का महत्व
कुंभ मेले के दौरान गंगा स्नान का सबसे अधिक महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति कुंभ मेले के दौरान गंगा में स्नान करता है तो उन्हें मोक्ष प्राप्त होता हैं। कुंभ मेले के दौरान गंगा स्नान से सभी पाप और रोगों से मुक्ति मिलती है।
कुम्भ इस साल मात्र डेढ़ महीने का होगा
कुंभ मेले में कुल चार शाही स्नान होंगे। पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि के मौके पर होगा तो दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर, तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल को संक्राति के अवसर पर और चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के दिन होगा। कोरोना की वजह से साढ़े तीन महीने तक चलने वाला कुम्भ इस साल मात्र डेढ़ महीने का होगा।