बीते चार वर्ष में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के करीब तीन दर्जन वरिष्ठ नेताओं (जिनमें गुलाम नबी आजाद भी हैं) ने दल-बदल किया है या नया संगठन बनाया है, उनके लिए यह चुनाव खुद को साबित करने का अवसर है। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण ने जम्मू कश्मीर में राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है।
इससे सभी राजनीतिक दलों व उनके नेताओं को रणनीतियों और प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। दशकों से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य को परिभाषित करने वाली पारंपरिक रेखाएं अभी भी धुंधली हैं और इसने राजनीतिक पुनर्गठन के एक नए युग को जन्म दिया है।
कुछ नेताओं ने अपने दल-बदल के कारणों में वैचारिक मतभेदों या अपनी पूर्व पार्टियों से मोहभंग का हवाला दिया, वहीं अन्य ने इसे क्षेत्र की बदलती गतिशीलता के अनुकूल होने के लिए व्यावहारिक कदम के रूप में देखा।
हालांकि, नेकां ने आईएनडीआई गठबंधन के साथ गठबंधन किया है। इसके बावजूद उसने पीडीपी के साथ किसी भी सीट-बंटवारे समझौते में शामिल होने से इनकार किया है, जिसने लोकसभा चुनावों से पहले जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अनिश्चितता को और बढ़ा दिया। बीते पांच वर्ष में जम्मू कश्मीर के राजनीतिक मंच पर कई नए चेहरे सामने आए हैं जो परंपरागत राजनीतिक संगठनों से अलग रहे हैं और प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति के लिए भी चुनौती बने हुए हैं।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) ने कश्मीर में नेकां, पीडीपी के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस के लिए भी मुश्किल पैदा की है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस बेशक 46 वर्ष पुराना दल है, ले