कृषि में युवाओं की कम भागीदारी: मोदी

नयी दिल्ली 24 फरवरी (वार्ता) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि क्षेत्र में युवाओं की कम भागीदारी और निजी क्षेत्र के नवाचार तथा निवेश से दूरी बनाये रखने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके लिए बजट में अनेक घोषणाएं की गयी हैं, जिनका लाभ उठाया जा सकता है । श्री मोदी ने कृषि एवं सहकारिता पर बजट उपरांत वेबिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि युवा कृषि के महत्व को जानते हैं ,इसके बावजूद उनकी इस क्षेत्र में कम भागीदारी है । निजी क्षेत्र कृषि में नवाचार और निवेश से दूरी बनाये हुए हैं जबकि कृषि प्रौद्योगिकी में नवाचार तथा निवेश की अपार संभावनाएं हैं । उन्होंने कहा कि बजट में अनेक घोषणाएं की गई हैं और इसमें ओपन सोर्स प्लेटफार्म को बढावा दिया गया है । लाजिस्टिक को बेहतर बनाया जा सकता है तथा बड़े बाजार तक पहुंच को आसान बनाया जा सकता है । युवा सही सलाह सही व्यक्ति तक पहुंचा सकता है । प्राइवेट इनोवेशन और इन्वेस्टमेंट इस सेक्टर से दूरी बनाए हुए हैं। इस खाली जगह को भरने के लिए इस साल के बजट में कई तरह के ऐलान किए गए हैं। जिस तरह से मेडिकल सेक्टर में लैब काम करते हैं उसी तरह से निजी मृदा जांच प्रयोगशाला स्थापित किये जा सकते हैं। युवा अपने इनोवेशन से सरकार और किसान के बीच सूचना के सेतु बन सकते हैं। ये बता सकते हैं कि कौन सी फसल ज्यादा मुनाफा दे सकती है। वे फसल के बारे में अनुमान लगाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद लंबे समय तक हमारा कृषि क्षेत्र अभाव के दबाव में रहा। हम अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए दुनिया पर निर्भर थे। लेकिन हमारे किसानों ने हमें ना सिर्फ आत्मनिर्भर बनाया बल्कि आज उनकी वजह से हम निर्यात करने में भी सक्षम हो गए हैं। आज भारत कई तरह के कृषि उत्पादों को निर्यात कर रहा है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक किसानों की पहुंच को आसान बनाया गया है। हमें यह भी ध्यान रखना है कि बात चाहे आत्मनिर्भरता की हो या निर्यात की, हमारा लक्ष्य सिर्फ चावल, गेहूं तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उदाहरण के लिए, 2021-22 में दलहन के आयात पर 17 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। मूल्य संवर्धित खाद्य उत्पाद के आयात पर 25 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। इसी तरह 2021-22 में खाद्य तेलों के आयात पर डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। सिर्फ इतनी ही चीजों के आयात पर करीब दो लाख करोड़ रुपये खर्च हो गए । यह पैसा हमारे किसानों के पास पहुंच सकता है, अगर हम इन कृषि उत्पादों के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन जाएं।