नई दिल्ली: बिहार के जातीय सर्वे मामले पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती ने पहली प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बिना भारतीय जनता पार्टी का नाम लिए कुछ दल इस सर्वे से असहज हैं।
मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म “एक्स” पर अपनी बातें साझा की, जहां उन्होंने कहा, “बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने की खबरें आज काफी सुखद हैं और उस पर गहन चर्चाएं जारी हैं। कुछ पार्टियां इससे असहज ज़रूर हैं किन्तु बीएसपी के लिए ओबीसी के संवैधानिक हक के लम्बे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी है।”
मायावती ने कहा, “बीएसपी को प्रसन्नता है कि देश की राजनीति उपेक्षित ‘बहुजन समाज’ के पक्ष में इस कारण नया करवट ले रही है, जिसका नतीजा है कि एससी/एसटी आरक्षण को निष्क्रिय और निष्प्रभावी बनाने तथा घोर ओबीसी व मण्डल विरोधी जातिवादी एवं साम्प्रदायिक दल भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नजर आने लगे हैं.”
मायावती ने यूपी सरकार को भी सलाह दी, कहा, “वैसे तो यूपी सरकार को अब अपनी नीयत और नीति में जन भावना और जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना/सर्वे अविलम्ब शुरू कर देना चाहिए, किन्तु इसका सही समाधान तभी होगा जब केन्द्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराकर उन्हें उनका वाजिब हक देना सुनिश्चित करेगी.”
बिहार के सर्वे में कुछ अहम आंकड़े हैं, जिनका सामाजिक व आर्थिक माध्यम से राजनीतिक महत्व हो सकता है। सर्वेक्षण में इबीसी समुदाय की जनसंख्या की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत बताई गई है, जो सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है। यहां तक कि यादव समुदाय भी प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत हैं, जो एससी और एसटी समुदायों के बीच के संघर्ष की बात करें तो इसका भी आदर किया जाता है।
सर्वेक्षण के अनुसार, अनुसूचित जाति की आबादी राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) है। अनारक्षित श्रेणी के लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर प्रभाव डाली।
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