मुंडन संस्कार, हिंदू धर्म में शिशु के संस्कारवान और तंदरुस्त बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार के द्वारा बच्चे के गर्भ की अशुद्धियों को दूर किया जाता है और उसकी बुद्धि, बल और रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित किया जाता है। मुंडन संस्कार में बच्चे के सिर के बाल काटे जाते हैं।
मुंडन संस्कार का सही समय
मुंडन संस्कार का समय धर्म और पंचांग के अनुसार निर्धारित किया जाता है। शिशु के जन्म के बाद एक साल के अंत या तीसरे, पांचवे, सातवें साल आदि में मुंडन संस्कार कराया जाता है। इसके लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथियों को शुभ माना जाता है। अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्रों में भी मुंडन संस्कार करना शुभ माना जाता है।
मुंडन संस्कार की विधि
मुंडन संस्कार की विधि में पंडित जी पहले हवन करते हैं। इसके बाद माता बच्चे को अपनी गोद में लेकर उसका मुंह पश्चिम दिशा में अग्नि की तरफ रखती हैं। उसके बाल उतारे जाते हैं और फिर उसका सिर गंगाजल से धोया जाता है। हल्दी का लेप लगाया जाता है।
पूर्व जन्म के पापों का मोचन करता है मुंडन संस्कार
मुंडन संस्कार का महत्व है कि इसके द्वारा शिशु के गर्भ के बालों का विसर्जन होता है, जो उसके पूर्व जन्म के पापों का मोचन करता है। इसके साथ ही शिशु की बुद्धि और शारीरिक प्रगति को बढ़ावा मिलता है। मुंडन संस्कार हमारी परंपरा और आध्यात्मिक आचार्यों के शास्त्रों में महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस तरह, मुंडन संस्कार एक महत्वपूर्ण हिंदू संस्कार है जो शिशु के स्वास्थ्य और अच्छे भविष्य के लिए अहम रूप से माना जाता है।
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