नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने हाल ही में अपने पहले आधिकारिक भारतीय दौरे पर बातचीत करने का मौका पाया। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। इन मुद्दों में कालापानी सीमा विवाद भी शामिल था, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से तनाव का केंद्र रहा है।
प्रचंड ने किया विचार विमर्श :
विभिन्न सूत्रों के मुताबिक, प्रचंड ने बातचीत के दौरान सीमा विवादों के समाधान के लिए कई विकल्पों पर विचार-विमर्श किया, जिसमें सीमा स्थानों की अदला-बदली भी शामिल थी। उन्होंने उदाहरण के तौर पर भारत और बांग्लादेश के बीच 2015 में हुई जमीन की अदला-बदली का जिक्र किया।
विपक्षीय विरोध:
हालांकि, नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने जमीन की अदला-बदली को लेकर प्रचंड के बयान का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इस बयान को ‘राष्ट्रीय हित के खिलाफ’ घोषित किया और उनके खिलाफ संवेदनशील जनसमर्थन का विरोध किया है। सीपीएन-यूएमएल के चीफ व्हिप पदम गिरी ने प्रचंड के बयान का जवाब मांगने की घोषणा की है।
भारत की स्थिति:
भारत, जहां पहले से ही कालापानी सीमा विवाद को लेकर चिंतित था, नेपाल के इस नए प्रस्ताव के साथ असमंजस में है। नेपाल की मांग के अनुसार, कालापानी की जमीन के बदले नेपाल को बांग्लादेश के लिए रास्ता मिलना चाहिए। इस रास्ते का महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के ‘चिकेन नेक’ कॉरिडोर से होकर जाता है, जिस पर चीन की नजरें गड़ाए बैठी हैं। इसलिए, भारत इस मामले में सतर्कता बनाए रखने के लिए जुटा हुआ है।
प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड द्वारा प्रस्तावित ‘लैंड स्वैप डील’ नेपाल और भारत के बीच कालापानी सीमा विवाद को सुलझाने का एक विकल्प है। यह विषय दोनों देशों के बीच तनाव का केंद्र रहा है और नेपाली विपक्ष द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। भारत की ओर से इस मामले में सतर्कता है और विवाद के समाधान के लिए सावधानीपूर्वक कार्रवाई कर रहा है। विपक्षीय दल और विशेषज्ञों के बीच इस मुद्दे पर अलग-थलग राय है। इस संदर्भ में, नेपाल और भारत के बीच मध्यस्थता और संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है ताकि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का समाधान निकाला जा सके।
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