‘Root March’, नयी दिल्ली, 01 मार्च (वार्ता) : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पूरे तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को ‘रूट मार्च’ निकालने की मद्रास उच्च न्यायालय की अनुमति को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर वह शुक्रवार को सुनवाई करेगा।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान तमिलनाडु सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के इस मामले पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध स्वीकार करते हुए तीन मार्च को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की। पीठ के समक्ष दलील देते हुए रोहतगी ने कहा कि राज्य सरकार प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की गतिविधियों और बम विस्फोटों से प्रभावित छह जिलों में ‘मार्च’ को प्रतिबंधित करना चाहती है।
‘Root March’
वरिष्ठ अधिवक्ता रोहतगी ने कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने हमारी (राज्य सरकार की) दलीलों पर सहमति जताई, लेकिन खंडपीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे (रूट मार्च को) अनुमति दे दी।
शीर्ष अदालत के समक्ष वकील जोसेफ अरस्तू के माध्यम से दायर अपनी अपील में तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि इस तरह के मार्च की अनुमति देने से राज्य में कानून-व्यवस्था समेत अन्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। याचिका में कहा गया है कि ‘मार्च’ के खिलाफ राज्य का निर्णय कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंधों के तहत था।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में सितंबर 2022 में पीएफआई पर प्रतिबंध के मद्देनजर सार्वजनिक शांति भंग की आशंका से संबंधित रिपोर्टों का भी हवाला दिया है।
मद्रास उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले को आरएसएस ने दो सदस्यीय पीठ के समक्ष चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक की पीठ ने पिछले महीने अपने आदेश में आरएसएस की याचिका को स्वीकार कर लिया था और इसे रूट मार्च करने की अनुमति दी थी।
उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि राज्य को नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बनाए रखना चाहिए।
यह भी पढ़ें : V.K SAXENA: छह महीने में भरे जाएंगे सरकारी खाली पद