सोनम ने कहा, खुले आसमान में माइनस 15 डिग्री में 110 लोगों के साथ अनशन कर रहे हैं। लद्दाख पर्यावरण और संस्कृति के बचाव के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा अपने मेनिफेस्टो में लद्दाख को संविधान की छठी सूची में शामिल करने का वादा कर चुके हैं, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘राजनेता केवल अगले पांच वर्षों के बारे में सोचते हैं और कुछ अमीर उद्योगपतियों के लाभ के लिए पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों को बेच देते हैं। स्थानीय लोगों को पीढ़ियों तक इसका परिणाम भुगतना पड़ता है।
‘चतुराई की नहीं, बुद्धिमत्ता की जरूरत’
वांगचुक ने कहा, ‘जब मानव जनित आपदाएं आती हैं तो इसकी लागत उन मुनाफों से अधिक होती है, लेकिन इस बार इसका भुगतान करदाताओं के पैसे से किया जाता है। यह कहानी पूरे हिमालय में, हिमाचल से लेकर उत्तरांचल और सिक्किम तक दोहराई गई है। इसे अधिक से अधिक चतुराई ही कहा जा सकता है, बुद्धिमत्ता नहीं। हम लद्दाख में मानते हैं कि हमें चतुराई की नहीं, बुद्धिमत्ता की जरूरत है।’
वांगचुक ने कहा कि छठी अनुसूची महत्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्रों में राज्यों को विशेष प्रशासनिक शक्तियां देती है। इसका कार्यान्वयन और लद्दाख को राज्य का दर्जा इसकी पारिस्थितिकी, पर्यावरण और स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।