हरियाणा में कर्मचारियों की शिकायतों का होगा जल्द समाधान

  • सभी विभागों में ‘कर्मचारी शिकायत निवारण समिति’ गठित करने के निर्देश
  • मुकद्दमों में आएगी उल्लेखनीय कमी

चंडीगढ़, 14 जुलाई-हरियाणा सरकार ने कर्मचारियों से जुड़े विवादों या शिकायतों के निपटान को गम्भीरता से लेते हुए, हर विभाग या संगठन में ‘कर्मचारी शिकायत निवारण समिति’ गठित करने के निर्देश दिए हैं। अब कर्मचारियों को अदालत में जाने से पहले विभागीय शिकायत निवारण समिति के माध्यम से समाधान करवाना अनिवार्य होगा। हर शिकायत का निपटारा अधिकतम आठ सप्ताह में करना आवश्यक होगा।
मुख्य सचिव श्री अनुराग रस्तोगी द्वारा सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षों, बोर्डों व निगमों के प्रबंध निदेशकों तथा विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को जारी आदेशों में कहा गया है कि सभी विभाग व संगठन 15 दिनों के भीतर समिति के गठन की पुष्टि करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रशासनिक न्याय विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजें। ये निर्देश प्रशासनिक न्याय विभाग द्वारा जारी हरियाणा स्टेट लिटिगेशन पाॅलिसी, 2025 के प्रावधानों के अनुरूप जारी किए गए हैं।

लिटिगेशन पॉलिसी के अनुसार, निर्णय प्रक्रिया में मनमानी और कर्मचारियों की शिकायतों या प्रतिवेदनों की अनदेखी सरकारी मुकदमों की बड़ी वजह बनती है। सेवा संबंधी मामलों में, अधिकतर मामले नियमों, निर्देशों और नीति निर्णयों के अनुसार राहत न मिलने से जुड़े होते हैं। अन्य मामलों में एक से अधिक नीतियां हो सकती हंै। न्यायालयों में आने वाले ऐसे अधिकतर मामलों में, अदालतें एक निश्चित समय-सीमा के भीतर स्पीकिंग ऑर्डर पारित करने के निर्देश देती हैं। मामला अदालत तक पहुंचने से पहले, सामान्य प्रशासनिक चैनल के माध्यम से अपनी शिकायतों को दूर करवाने के लिए आमतौर पर प्रभावित पक्ष काफी प्रयास करता है और इसमें काफी समय भी लग जाता है। इसके मद्देनजर सभी विभागों को प्रभावी शिकायत निवारण समितियाँ गठित करनी होंगी, जिससे काफी संख्या में अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोका जा सकेगा।

इस शिकायत निवारण प्रणाली की संरचना द्विस्तरीय होगी। पहली श्रेणी में विभागाध्यक्ष की अध्यक्षता में मुख्यालय स्तर पर समिति गठित की जाएगी। इसमें दो क्लास-प् अधिकारी होंगे, जिनमें से एक एसएएस काडर का और दूसरा मुख्यालय पर तैनात विधि अधिकारी होगा। दूसरी श्रेणी जिला स्तर पर होगी, जिसकी अध्यक्षता संबंधित उपायुक्त या सेवानिवृत्त जिला/अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश करेंगे। इस समिति में उपायुक्त द्वारा मनोनीत जिला स्तर पर मुख्य लेखाधिकारी, वरिष्ठ लेखाधिकारी या लेखाधिकारी तथा डिस्ट्रिक्ट अटार्नी, डिप्टी डिस्ट्रिक्ट अटार्नी या असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटार्नी भी शामिल होंगे।

लिटिगेशन पॉलिसी में स्पष्ट किया गया है कि सम्बन्धित विभागाध्यक्ष तथा उपायुक्त द्वारा इन समितियों का गठन पॉलिसी जारी होने के 14 दिनों के भीतर अधिसूचित किया जाना अनिवार्य है। मुख्यालय स्तर पर संबंधित अतिरिक्त निदेशक या संयुक्त निदेशक तथा जिला स्तर पर सम्बन्धित विभाग के जिला प्रमुख इस समिति की सहायता करेंगे।

इस समिति को शिकायत या प्रतिवेदन प्राप्त होने के 7 दिनों के भीतर सुनवाई की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। समिति कर्मचारी को व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत होकर अपना पक्ष रखने का अवसर देगी। मौखिक और लिखित प्रतिवेदनों के आधार पर 30 दिनों के भीतर अपनी अनुशंसा संबंधित उच्च अधिकारी को भेजेगी। उच्च अधिकारियों को अनुशंसा प्राप्त होने के एक माह के भीतर इस पर अंतिम निर्णय लेना होगा।

विभाग स्तरीय शिकायत निवारण प्रकोष्ठ या समिति की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष करेंगे। यह समिति मासिक बैठक कर मुख्यालय और क्षेत्रीय स्तर पर विभाग में मौजूद शिकायत निवारण प्रणाली की प्रभावशीलता की समीक्षा करेगी। यदि निर्देशों या नियमों में सामान्य प्रशासन या वित्त विभाग के स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है तो मामले को इस पाॅलिसी के तहत गठित राज्य स्तरीय अधिकार-प्राप्त समिति को भेजेगी। चूंकि अनुशासनात्मक कार्रवाई, वरिष्ठता और एसीपी से जुड़े मामलों में मुद्दमेबाजी ज्यादा होती है, इसलिए इनका शीघ्र निपटान किया जाना अनिवार्य है। साथ ही, वरिष्ठता सूची को निर्धारित प्रक्रिया के तहत नियमित रूप से अपडेट और मुद्रित या प्रकाशित किया जाना चाहिए।

प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, हर विभाग को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के परामर्श से एक समर्पित साॅफ्वेयर प्लेटफार्म विकसित करना होगा। इसके माध्यम से कर्मचारी अपनी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज कर सकेंगे, अपनी शिकायत की स्थिति का पता लगा सकेंगे और निर्धारित समय-सीमा में जवाब प्राप्त कर सकेंगे। इससे शिकायतों के निपटान में न केवल पारदर्शिता आएगी बल्कि जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी।