रोष प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के इस लोकतंत्र विरोधी फैसले को वापस लिया जाए

चंडीगढ़, 26 जून:

संगरूर से लोकसभा सदस्य गुरमीत सिंह मीत हेयर ने पंजाब विश्वविद्यालय में रोष प्रदर्शनों पर लगाई गई रोक को लोकतंत्र विरोधी करार देते हुए विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और देश के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर यह फैसला तुरंत वापस लेने की मांग की है।

मीत हेयर ने लिखा, “पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, पंजाब की समृद्ध विरासत का प्रतीक है, जो आज़ादी से पहले से इस क्षेत्र की प्रमुख शैक्षणिक संस्था रही है। यह न केवल पंजाब बल्कि देश की श्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों में से एक है। पंजाब विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने शिक्षा, विज्ञान, कानून, कला, संस्कृति, खेल और राजनीति सहित हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार द्वारा पंजाब विश्वविद्यालय से जुड़े जो तर्कहीन निर्णय लिए जा रहे हैं, वे इस शैक्षणिक संस्था की छवि को नुकसान पहुँचाने का प्रयास प्रतीत होते हैं।”

लोकसभा सदस्य ने पत्र में लिखा है कि पंजाब विश्वविद्यालय में छात्रों से धरना न देने और विरोध प्रदर्शन न करने का लिखित शपथ-पत्र लेना, उनके मौलिक अधिकारों पर सीधा हमला है। यह फैसला किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह निर्णय जहां छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है, वहीं यह एक तानाशाही सोच का भी प्रतीक है। हमारे संविधान में हमें विरोध प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है और इस नए आदेश से सीधे-सीधे इन अधिकारों पर प्रहार किया गया है।

उन्होंने कहा कि पिछले समय में जब-जब पंजाब विश्वविद्यालय में छात्र विरोधी फैसले लिए गए, छात्रों ने विरोध प्रदर्शन कर इन्हें वापस करवाया था। अब छात्रों को अपने इसी अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पंजाब विश्वविद्यालय के संबंध में लिए गए एकतरफा फैसलों ने इस महान शैक्षणिक केंद्र की साख को गहरी चोट पहुँचाने का प्रयास किया है। मीत हेयर ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय में रोष प्रदर्शन न करने संबंधी छात्रों से लिखित शपथ-पत्र लेने का हाल ही में जारी किया गया आदेश न केवल संविधान में निहित उनके मौलिक अधिकारों को खत्म करता है, बल्कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भावना का भी घोर उल्लंघन है।

मीत हेयर ने कहा कि एक ओर पंजाब विश्वविद्यालय काउंसिल के वार्षिक चुनावों के माध्यम से छात्रों को लोकतंत्र का पहला पाठ सिखाया जाता है, वहीं वर्तमान में लिया गया यह निर्णय इस परंपरा का सीधा विरोधाभास है। पंजाब विश्वविद्यालय ने देश की राजनीति को उच्च स्तर के नेता दिए हैं, लेकिन मौजूदा फैसले से इस शानदार परंपरा को गहरी चोट पहुँचेगी।

उन्होंने पत्र के अंत में लिखा, “आप इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। इसलिए मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप इस मामले में व्यक्तिगत रुचि लेकर इस तानाशाही फैसले को वापस करवाने की पहल करें।”