अनुच्छेद-370 से आजादी के पांच साल पूरे, बेड़ियां टूटीं; शिखर छूती उम्मीदें

मेरे जैसे कई कश्मीरियों के लिए अनुच्छेद-370 अतीत की बात है। झेलम और गंगा हमेशा के लिए महान हिन्द महासागर में विलीन हो गईं हैं। वहां से कोई वापसी नहीं है। केवल आगे बढ़ना है।’…चर्चित कश्मीरी और आईएएस से राजनेता, फिर राजनेता से आईएएस बनने के अनूठे उदाहरण शाह फैसल की अंग्रेजी में एक्स पर पिन की हुई इस टिप्पणी के भाव को अनुच्छेद-370 से आजादी के पांच वर्षों का निचोड़ मान सकते हैं। फैसल 2019 में देश में बढ़ती असिहष्णुता का हवाला देकर नौकरशाही छोड़ राजनीति के मैदान में आए थे। तीन साल बाद ही उन्हें हकीकत का एहसास हो गया। 2010 बैच के इस टॉपर ने फिर से प्रशासनिक सेवा में वापसी कर ली। केंद्र ने इस गुजारिश को स्वीकार भी कर लिया। फैसल ही नहीं, क्रिकेट की नई सनसनी उमरान मलिक जैसी अनेक प्रतिभाएं इसी दौर में निखरी हैं। जम्मू-कश्मीर से लद्दाख तक आपको फैसल की समझदारी की बानगी हर कदम नजर आती है। अनुच्छेद-370 से आजादी के बाद इस राज्य ने भरपूर तरक्की की रफ्तार पाई है। पंजाब से जम्मू-कश्मीर की ओर बढ़िए तो दिल्ली-अमृतसर-कटड़ा एक्सप्रेस-वे के जरिए जम्मू पहुंचने से पहले ही आपको सूबे में बदलावों की झांकी दिखनी शुरू हो जाएगी।

अनुच्छेद-370 से आजादी के बाद मिली तरक्की को रफ्तार – 

मंदिरों के शहर जम्मू में प्रवेश करते ही तवी नदी पर रिवर फ्रंट आकार लेता नजर आ रहा है। उधमपुर-रामबन के रास्ते श्रीनगर की ओर बढ़िए तो हाईवे और पहाड़ों के बीच टनल में फर्राटा भरतीं गाड़ियां, इस दुर्गम प्रदेश की सुगम यात्रा का आनंद हर क्षण महसूस कराती हैं। चिनाब पर विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल बन गया है। कश्मीर जल्दी ही रेल मार्ग के जरिए पूरे देश से जुड़ने को तैयार है। पीएम जब चाहें, हरी झंडी दिखा सकते हैं।

अमन के साथ तरक्की की यह कहानी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट व बड़े-बड़े प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं है। कटड़ा में मां वैष्णो देवी के दरबार पहुंचिए तो श्रद्धालु यात्रा और दर्शन की सुविधाओं में सुधार की तारीफ करते नजर आते हैं। श्रीनगर पहुंचने पर डल झील हो या हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र शंकराचार्य व खीर भवानी मंदिर पर्यटकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण हंै।

अमरनाथ यात्रा पिछले 10 वर्षों का इतिहास बनाने वाली है। इस दुर्गम यात्रा को रोपवे से सुगम बनाने की रूपरेखा तैयार है। बूढ़ा अमरनाथ यात्रा की तैयारी भी चल रही है। देश-दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं के बीच आतंकी घटनाओं का कोई असर नजर नहीं आया है। सूबे में गन और गोली की जगह निवेश और नौकरियों की बात हो रही है। चर्चित लाल चौक पर पर्यटकों का जमावड़ा राज्य के बदलावों की गवाही दे रहा है। श्रीनगर के लाल चौक के पास एक मल्टीनेशनल चेन में काम करने वाले कारोबार प्रबंधन में स्नातक (बीबीए) फैजान कहते हैं कि यहां के आम लोग अमन पसंद हैं। इन पांच सालों में आतंकवाद और घुसपैठ में काफी कमी आई है। सेना को लोगों का साथ मिला है। अलगाववादी गतिविधियां ठप हैं। जिस पत्थरबाजी से आम लोग त्रस्त थे, वह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। फैजान कहते हैं कि लाल चौक पर दिल्ली के इंडिया गेट की तरह गुलजार मार्केट से ही समझ सकते हैं, बदलाव कितना पुरसुकून वाला है।

पांच साल में 75 साल वाली आजादी का अहसास –

प्रदेश के वाल्मीकि समाज और पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापित स्थायी नागरिकता से वंचित थे। पांच अगस्त 2019 से पहले राज्य में दो मतदाता सूचियां बनती थीं। एक विधानसभा चुनावों के लिए और दूसरी संसदीय चुनावों के लिए। विधानसभा की सूची में सिर्फ जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी जिन्हें स्टेट सब्जेक्ट या स्थायी नागरिक कहा जाता था, वे ही पंजीकृत होते थे। वे ही वोट डाल सकते थे। आगामी विधानसभा चुनावों में वाल्मीकि समाज और पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापित भी वोट डाल पाएंगे। इसी तरह प्रदेश में पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को जमीन का मालिकाना हक मिला। पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। इन्हें असली आजादी अनुच्छेद-370 खत्म होने की वजह से मिल पाई है।

सावधान! जम्मू के लोग मायूस हैं –

जम्मू संभाग पिछले कई सालों से शांत माना जाता था। आतंकी गतिविधियां खत्म हो गई थीं। लेकिन, लोकसभा चुनाव में अवाम के उत्साहपूर्ण मतदान से बौखलाए पाकिस्तान ने फिर आतंकियों को घुसपैठ कराने और छद्म युद्ध का रास्ता पकड़ लिया है। पीएम नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के दिन तीर्थयात्रियों की बस पर हुए आतंकी हमलों ने यह शांति छीन ली है। अब तक करीब एक दर्जन छोटे-बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं। इनमें कई जवान बलिदान हुए हैं। मुश्किल ये कि सेना व पुलिस तमाम प्रयास के बाद भी आतंकियों के खिलाफ ठोस कुछ नहीं कर पाई है। लोगों में चिंता बढ़ रही है। विधानसभा चुनाव की उम्मीदें सुरक्षा के फैक्टर पर टिकी हुई हैं। केंद्र के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए।

लद्दाख में भी अधिकारों को लेकर गुस्सा – 

लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। इसके कई सकारात्मक बदलाव नजर आए हैं, लेकिन लद्दाख के लोग राज्य को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक का आंदोलन लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण बन चुका है। वांगचुक ने फिर से आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है। यह चेतावनी उन्हें सुनने की मांग करती है।