आपकी जानकारी के लिए बता दे की पिछले चार दिन काफी रोमांच से भरे रहे हैं। 4 तारीख को सुबह से ही सबकी नजरें चुनाव परिणामों पर टिकी हुई थीं। जैसे-जैसे नतीजे आ रहे थे, लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। कोई जश्न मना रहा था तो कोई शोक।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के इस सबसे लोकतांत्रिक और रोमांचक चुनावी मुकाबले पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी थीं। 543 लोकसभा सीटें, 96.9 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर्स, 10 लाख से ज्यादा पोलिंग स्टेशंस, 2660 रजिस्टर्ड पॉलिटिकल पार्टीज के बीच 47 दिनों तक चला और 7 चरणों में पूरा हुआ यह चुनाव सिर्फ देश की सियासत का आंकड़ा भर नहीं है।
इसके पीछे राजनीति है, दर्शन है, विज्ञान है, अनुशासन है, प्रतिबद्धता है और जीवन मूल्य हैं। इस चुनाव से एक आम नागरिक, एक साधारण इंसान के रूप में हम अपनी जिंदगियों के सबसे जरूरी और कीमती सबक भी सीख सकते हैं। तो चलिए, आज सेल्फ रिलेशनशिप कॉलम में बात उन 10 लाइफ लेसंस की, जो हमें इस चुनाव से सीखने और अपनी जिंदगी में उतारने चाहिए।
देश हो, दफ्तर हो, घर हो या जीवन, सबकी सफलता की बुनियाद एक ही है
चाहे एक सफल देश हो, सफल कंपनी हो, सफल प्रोफेशनल व्यक्ति हो या प्यार-मुहब्बत से रह रहा एक सफल परिवार हो, सबकी बुनियाद में एक ही चीज होती है। वह है सबको साथ लेकर चलना और सबके विचारों-भावनाओं का समान रूप से आदर करना।
अगर किसी परिवार में पिता सभी बच्चों को समान नजर से न देखे, भेदभाव करे तो बच्चों में ही दूरी और दरार आ जाती है। अगर कोई बॉस टीम के सभी सदस्यों को समान रूप से मौके न दे तो टीम बिखर जाती है। अगर कोई कंपनी सभी कर्मचारियों को समान नजर से न देखे तो असंतोष बढ़ता है।
इसलिए सफल लीडरशिप वही है, जो लोकतांत्रिक हो और सबके हितों की समान रूप से परवाह करती हो। अगर आप एक स्टूडेंट हैं या प्रोफेशनल हैं तो जीवन में सफलता के पहले सबक के रूप में यह बात गांठ बांध लीजिए।
अनुशासन ही है सफलता की बुनियाद
यह तो जीवन की ऐसी शिक्षा है, जो सृष्टि के कोने-कोने में व्याप्त है। जहां आंख उठाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि पूरा ब्रम्हांड इसीलिए चल रहा है क्योंकि इसमें एक बला का अनुशासन है। धरती जैसे घूमती है, सूरज जैसे उगता और डूबता है, मनुष्य का हृदय जैसे लगातार एक गति से धड़कता और पूरे शरीर को खून पहुंचाता रहता है, हर गतिविधि में एक अनुशासन है। इन चुनावों में इंडिया गठबंधन की सफलता का एक बड़ा कारण भी यह अनुशासन ही है।
इसलिए हम चाहे जीवन के जिस भी पड़ाव पर और जिस भी जगह पर हों, अगर अपने काम को एक डिसिप्लिन और कमिटमेंट के साथ कर रहे हैं तो हम सफलता के नहीं, सफलता हमारे पीछे चलेगी।
हर विचार का आधार हो ठोस तथ्य और आंकड़े
तथ्य क्या है? आंकड़े क्या हैं? यह भावनात्मक बात नहीं है। यह एक ठोस बात है। यह गणित के नियम की तरह है। एक हायपोथिसिस, जिसे वैज्ञानिक ढंग से प्रूव किया जा सकता है। ओपिनियन हमारे विचार हैं, उसमें हमारी भावना भी शामिल है। लेकिन फैक्ट के साथ ऐसा नहीं है।
जैसेकि यह हमारी इच्छा या भावना हो सकती है कि गर्मी बहुत पड़ रही है, काश कि बारिश हो जाए। लेकिन बारिश का होना एक भौतिक, वैज्ञानिक घटना है। वह तभी होगी, जब बादल आएंगे, टकराएंगे। बादलों के बनने, चलने, आने, बरसने के पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण हैं।
जैसेकि यह हमारी भावना है कि हम अमुक परीक्षा में पास हो जाएं। लेकिन फैक्ट ये है कि हमारी सफलता इस बात पर निर्भर है कि परीक्षा में हमने कितने सवालों का सही जवाब लिखा। चाहे चुनाव हो या जीवन, हमारी सफलता की संभावना उतनी बढ़ती जाएगी, हम जितना फैक्ट आधारित होंगे, जितना जमीनी हकीकत से जुड़े होंगे।
अधिकार मांगने से पहले कर्त्तव्य निभाना जरूरी
सरकारों की बात करें तो जनता सरकार के कर्त्तव्य तो याद दिलाती है, लेकिन जब अपना कर्त्तव्य निभाने की बारी आती है तो पीछे हट जाती है। लोग वोट देने के लिए घरों से बाहर नहीं निकलते। कहते हैं, उन्हें पॉलिटिक्स में कोई इंटरेस्ट नहीं है, नेताओं पर बिलकुल भरोसा नहीं है। लोकतंत्र में अगर सरकार की जिम्मेदारी है तो जनता की भी जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में मतदान करना लोक यानी जनता का कर्त्तव्य है।
अंधेरे दिन ही सबसे बड़े शिक्षक हैं
अमेरिकन एक्टर और सोशल एक्टिविस्ट मैंडी पैटिनकिन एक बार अमेरिका में आर्ट्स के कुछ स्टूडेंट्स को संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में एक जगह उन्होंने कहा, “सफल दिनों में तो हम सिर्फ सफल होते हैं, असफल दिनों में सीख रहे होते हैं।
मैंडी से पहले भी यह बात गांधी, चर्चिल, रूसो, बुद्ध अलग-अलग तरीकों से कह चुके हैं। अंधेरों से ही रौशनी की जन्म होता है। अंधेरा ही सिखाता है। मुश्किलें और चुनौतियां ही हमें निखारती हैं, बेहतर बनाती हैं। और सबसे जरूरी है यह बात सबसे अंधेरों दिनों में याद रखना।