देश में टाइगर स्टेट के नाम से अपनी प्रतिष्ठा को कायम करने के बाद अब मध्य प्रदेश में बाघ संरक्षण के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। देशभर में इस साल अब तक 61 बाघों की मौत की पुष्टि हुई है। इनमें अकेले मध्य प्रदेश में ही 25 बाघ मारे गए हैं। ज्यादातर बाघों की मौत टाइगर रिजर्व में हुई है, जो चिंता का सबब बन गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 13, कान्हा टाइगर रिजर्व में आठ और पन्ना टाइगर रिजर्व में चार बाघ मारे गए हैं। 2023 में मध्य प्रदेश में 41 बाघों की मौत हुई थी, जो आंकड़ा इस बार बढ़ सकता है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2012 से अब तक सबसे ज्यादा बाघों की मौतें मध्य प्रदेश में हुई है। इन 12 वर्षों में मध्य प्रदेश में ही 340 बाघों की मौत हुई है। इसके कारणों में बाघों के बीच क्षेत्र पर कब्जे की लड़ाई, शिकार और बीमारी शामिल है। जून में शिकारियों ने सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में घुसकर बाघ का शिकार किया था। उसका सिर काटकर साथ ले गए थे। इसके बाद बाघों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग ने अलर्ट जारी किया था। जुलाई में रायसेन जिले की आशापुरी बीट में एक बाघ का कंकाल मिला था। इसका गोली मारकर शिकार करने की आशंका व्यक्त की गई थी। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि बाघों की मौत का सबसे बड़ा कारण उनकी सुरक्षा को लेकर जिम्मेदारों की उदासीनता है। केंद्र ने बाघों की सुरक्षा के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनाने को कहा था, लेकिन अब तक राज्य सरकार ने इस पर काम नहीं किया। जब बाघों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी हथियार लेकर जंगल में उतरेंगे तो बाघों की सुरक्षा तो होगी ही, जंगल की अवैध कटाई और अवैध खनन पर भी अंकुश लगेगा। टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत शिकार की आशंका को ताकत दे रही है। शिकार नहीं रुकने का कारण यह है कि अधिकारियों की जिम्मेदारी ही तय नहीं है। जिन मामलों में बाघों के शिकार की पुष्टि हुई है, उनमें भी शिकारियों को सजा का प्रतिशत बहुत कम है। केस दर्ज होता है। जांच होती है। लेकिन कितने लोगों को सजा दी गई, इसकी कोई जानकारी नहीं है।