सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज के लिए पत्नी की हत्या के मामले में आरोपी को आत्मसमर्पण की अनुमति देने से इनकार कर दिया। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “आपने ऑपरेशन सिंदूर में भाग लिया हो, इसका मतलब यह नहीं कि आपको घर में अत्याचार करने का अधिकार मिल गया।”
क्या है मामला?
आरोपी बलजिंदर सिंह, जो एक ब्लैक कैट कमांडो है और राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात रह चुका है, ने सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध किया था कि उसे पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय की छूट दी जाए। उसने यह दलील दी कि वह पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर में भी शामिल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस पर सख्त रुख अपनाया। अदालत ने कहा:
“आपका सैन्य रिकॉर्ड यह साबित करता है कि आप शारीरिक रूप से कितने सक्षम हैं। इसका यह भी मतलब हो सकता है कि आपने अकेले ही अपनी पत्नी की हत्या की हो।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को एक गंभीर अपराध (दहेज हत्या) के लिए दोषी ठहराया गया है, इसलिए उसे आत्मसमर्पण में छूट देना उचित नहीं है।
हाईकोर्ट ने भी की थी सजा बरकरार
इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी बलजिंदर सिंह की अपील को खारिज कर उसकी सजा को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील इसी आदेश के खिलाफ की गई थी।
क्या आगे होगा?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल याचिका खारिज नहीं की है। अदालत ने मामले में नोटिस जारी करते हुए प्रतिवादियों से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
कौन-सी धाराओं में दर्ज है केस?
बलजिंदर सिंह पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी (दहेज के लिए हत्या) के तहत मामला दर्ज है। पुलिस के अनुसार, उसकी पत्नी को दहेज की मांग को लेकर ससुराल में प्रताड़ित और क्रूरता का शिकार होना पड़ा, जिसके कारण उसकी मौत हुई।
न्यायपालिका का स्पष्ट संदेश
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ संदेश दिया है कि देश सेवा की सराहना अपनी जगह है, लेकिन उसका इस्तेमाल गंभीर अपराधों से बचने के तर्क के रूप में नहीं किया जा सकता। कानून सबके लिए समान है, चाहे वह कोई भी पेशा क्यों न करता हो।