दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक बड़े फर्जी डिग्री रैकेट का खुलासा किया है, जिसमें देशभर के हजारों लोगों को नकली लेकिन असली दिखने वाली डिग्रियां महज़ 1 से 1.5 लाख रुपये में बेची जा रही थीं। इस घोटाले का मास्टरमाइंड कोई उच्च शिक्षित व्यक्ति नहीं, बल्कि महज 10वीं पास विक्की हरजानी नामक शख्स है, जो उत्तर प्रदेश के एक निजी संस्थान — परमहंस विद्यापीठ — में माली के तौर पर काम करता था।
क्राइम ब्रांच ने इस रैकेट से जुड़े पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। इनसे 228 नकली मार्कशीट, 27 डिग्री सर्टिफिकेट और 20 माइग्रेशन सर्टिफिकेट बरामद किए गए हैं। गिरफ्तार आरोपियों में शामिल हैं –
विक्की हरजानी (मुख्य आरोपी, उत्तर प्रदेश से)
विवेक गुप्ता (नोएडा से)
सतबीर सिंह (फरीदाबाद से)
नारायण सिंह (बुराड़ी, दिल्ली से)
एक अन्य आरोपी, जो फिलहाल राजस्थान की जेल में बंद है।
असली जैसे नकली डिग्री: रिकॉर्ड भी अपडेट
पुलिस के अनुसार, यह गिरोह बी-फार्मा, बी.टेक, बीएमएस, बीए और एमए जैसी डिग्रियों की सप्लाई करता था। हैरानी की बात यह है कि इन डिग्रियों की एंट्री संबंधित यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड में भी दर्ज की जाती थी, जिससे वे पूरी तरह असली प्रतीत होती थीं। क्रॉस वेरिफिकेशन के दौरान भी ये डिग्रियां फर्जी साबित नहीं हो पाती थीं।
अब तक 5000 से अधिक डिग्रियां बेची गईं
क्राइम ब्रांच के मुताबिक, गिरोह अब तक 5000 से अधिक फर्जी डिग्रियां बेच चुका है। ये लोग ना सिर्फ ज़रूरतमंद छात्रों को खुद संपर्क करते थे, बल्कि उनकी कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें डिग्री खरीदने के लिए उकसाते भी थे।
सरकारी नौकरियों में भी घुसपैठ
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इन डिग्रियों के आधार पर कई लोगों ने सरकारी नौकरियाँ भी हासिल कर ली हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने केंद्र सरकार को भी जानकारी दे दी है, ताकि ऐसे मामलों की व्यापक जांच की जा सके।
फिलहाल पुलिस इस रैकेट से जुड़े अन्य लोगों की तलाश कर रही है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि यूनिवर्सिटी रिकॉर्ड में हेरफेर किसकी मदद से किया जा रहा था। मामले की जांच जारी है।