दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में अचानक पानी भर गया। इस घटना में दो छात्राओं की मौत की खबर है और कुछ छात्र अभी भी बेसमेंट में फंसे बताए जा रहे हैं। राजधानी में कोचिंग संस्थानों के संचालक छात्रों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। वह नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से कोचिंग सेंटर का संचालन कर रहे हैं। इन कोचिंग संस्थाओं में न तो ठीक से निकासी द्वार हैं और न ही प्रवेश द्वार। सीढ़ियों पर ही बिजली के मीटर लगे हुए हैं। यही नहीं तंग सीढ़ियों से एक बारी में केवल एक छात्र ही आ जा सकता है। भवन मालिकों से किराए पर जगह लेने के वक्त न तो सुरक्षा से संबंधित पहलुओं का ध्यान दिया जाता है और न ही इसके लिए कोई फिक्रमंद है। संचालकों की कोशिश रहती है कि कम से कम खर्च में अधिक से अधिक कमाई कैसे की जाए। इस चक्कर में अपना भविष्य संवारने के लिए संस्थानों पर पहुंचने वाले छात्र-छात्राओं पर लगातार हादसों का खतरा बना है। राजेंद्र नगर, मुखर्जी नगर, करोल बाग, लक्ष्मी नगर समेत कई बड़े कोचिंग हब हैं। जहां कोचिंग संचालक नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। बहुमंजिला इमारतों में घुसने के लिए संकरी सीढ़ियां, प्रवेश व निकासी के छोटे रास्ते, छोटे कमरों में ठसाठस भरे छात्र ये हालात इन कोचिंग संस्थानों में आम देखने को मिलते हैं। मुखर्जी नगर में यूपी के दादरी से सिविल परीक्षा की तैयारी करने आए आदित्य ने दावा करते हुए बताया कि एक कक्षा में 100-200 छात्रों के बैठने की क्षमता है, लेकिन कोचिंग संचालक एक हजार से 1500 छात्रों को पढ़ाते हैं। इन कक्षाओं में प्रवेश और निकास के लिए सिर्फ एक ही दरवाजा है। यहीं नहीं, खिड़कियों में भी विज्ञापन के होर्डिंग लगे हुए हैं। वहीं, सत्यम ने बताया कि कि हर बैच में लगभग 2000 छात्रों को एक साथ पढ़ाया जाता है। ऐसी स्थिति में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। कई कोचिंग सेंटर में तो अग्निशमन यंत्र भी नहीं लगे हुए है। ऐसे में आग लगती है तो ये बड़े हादसे को दावत दे सकती है। उन्होंने बताया कि मानवीय भूल शॉर्ट सर्किट को तो छोड़िए, अगर भूकंप आ गया तो हालात खराब हो सकते हैं।
कई बिल्डिंग हैं, जहां बड़ी संख्या में कोचिंग सेंटर चलाए जा रहे हैं। कई कोचिंग सेंटर छोटे-छोटे कमरे में चल रहे हैं। इतना ही नहीं बेसमेंट में कक्षाएं लगती हैं। मोटी फीस वसूलने के बावजूद सुरक्षा के नाम पर संचालक हाथ खड़े कर देते हैं। बत्रा कैंपस स्थित जैना हाउस, अंसल बिल्डिंग, मनुश्री बिल्डिंग में प्रवेश द्वार पर ही एक साथ दर्जनों तारें उलझी हुई हैं। इसी तरह बेसमेंट का भी यही हाल है, जहां हल्की सी बारिश होने पर जलभराव हो जाता है। ऐसे में बच्चों को करंट लगने की आशंका बनी रहती हैं। ज्यादातर कोचिंग सेंटर में आग से बचाव वाले उपकरण तो हैं, लेकिन स्थिति जर्जर है। संचालक का ध्यान सिर्फ बच्चों की संख्या पर रहता है। ऐसे में सूरत हादसे से सरकार व स्थानीय निकाय को सबक लेना चाहिए। कोचिंग सेंटरों की खिड़कियां प्रचार बोर्ड से छिपी रहती हैं। एमसीडी से मिलीभगत की वजह से प्रचार बोर्ड बेतरतीब लगा दिए जाते हैं। सबसे बड़ी चुनौती कोचिंग संस्थान के प्रचार के लिए लगे बोर्ड को हटाना था। छात्र रजत नेगी का कहना है कि छात्रों की सुरक्ष कोचिंग संचालकों अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं। इन पर कड़ी कार्यवाई होनी चाहिए।