बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा पति को धमकाना, आत्महत्या की धमकी देना निर्दयता है और यह तलाक का आधार बन सकता है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय का फैसला बरकरार रखा और दंपति की शादी को खत्म करने आदेश दिया। बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ के जस्टिस आर एम जोशी ने परिवार न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को बरकरार रखा।
दरअसल महिला ने परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ बॉम्बे उच्च न्यायालय का रुख किया था। सुनवाई के दौरान महिला के पूर्व पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने उसे आत्महत्या करने की धमकी दी और इसके आरोप में पति और उसके परिजनों को जेल भेजने की धमकी दी। महिला ने एक बार आत्महत्या की कोशिश भी की थी। पति ने कहा कि यह हिंदू मैरिज एक्ट के तहत निर्दयता है। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पेश किए गए सबूतों से साफ है कि आरोप सही हैं। इसके बाद उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय के तलाक के आदेश को बरकरार रखा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी द्वारा इस तरह का कृत्य निर्दयता माना जाएगा और यह तलाक का आधार बन जाता है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। मामले के अनुसार, दंपति की शादी साल 2009 में हुई थी और दोनों की एक बेटी भी है। पुरुष का दावा है कि महिला लगातार अपने मायके जाती थी, जिससे उसकी शादीशुदा जिंदगी में लड़की के परिजनों की दखलअंदाजी बढ़ गई। साल 2010 में महिला अपने मायके आ गई और ससुराल लौटने से इनकार कर दिया। वहीं महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति और उसके ससुर ने उसे प्रताड़ित किया, जिसके चलते उसने अपनी ससुराल वाला घर छोड़ा। महिला ने अपने पति के साथ किसी भी तरह की निर्दयता करने की बात से इनकार किया।