जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले के भलेसा क्षेत्र में स्थित दधकाई गांव एक अनोखी और पीड़ादायक कहानी कहता है। यह गांव ‘भारत का शांत गांव’ कहलाता है, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में लोग सुनने और बोलने में अक्षम हैं। आंकड़ों के अनुसार, गांव में लगभग 84 लोग — जिनमें 43 महिलाएं और 14 दस वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं — इस दुर्बलता से जूझ रहे हैं।
इस गांव के लोग अपनी परिस्थितियों से हार नहीं मानते। एक उल्लेखनीय उदाहरण में, बिजली का ट्रांसफार्मर खुद ग्रामीणों ने कंधों पर उठाकर कई किलोमीटर दूर तक पहुँचाया, क्योंकि गांव में सड़क की सुविधा नहीं है। हालांकि वे परिवहन सेवा के लिए भुगतान करते हैं, फिर भी उन्हें खुद यह कठिन कार्य करना पड़ता है — जो बुनियादी ढांचे की गंभीर खामियों और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही को उजागर करता है।
गांव की भौगोलिक स्थिति और सड़क नेटवर्क की कमी आवश्यक सेवाओं तक पहुंच को बेहद कठिन बना देती है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मूलभूत ज़रूरतें भी यहां रहने वालों के लिए एक चुनौती बन गई हैं। यह स्थिति सरकार की प्रशासनिक निगरानी और नेतृत्व की जिम्मेदारी पर सवाल उठाती है।
ज़रूरत है ठोस कदमों की:
दधकाई के हालात उन आवश्यक उपायों की ओर संकेत करते हैं जिनकी तुरंत आवश्यकता है:
- सड़कों और बुनियादी सेवाओं की बेहतर उपलब्धता
- प्रभावी प्रशासन और जवाबदेही
- दिव्यांगजनों के लिए विशेष सहायता और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास
दधकाई गांव का संघर्ष देश के कई अन्य ग्रामीण इलाकों में मौजूद समस्याओं का प्रतीक है। इसे केवल एक स्थानीय मुद्दा मानना गलत होगा। यह समय है कि प्रशासन, नीति निर्माता और समाज मिलकर इस तरह की आवाज़ों को सुने और बदलाव की दिशा में ठोस कदम उठाएं।